मियां जी - ४
मियां जी के बेमतलब हर किसी के मामले में दिलचस्पी लेने की आदत आज उन्हीं पर भारी पड़ गई थी।
इससे पहले अधिकारी अपनी किताब से उनके कर्मों का पृष्ठ खोल कर बताते, मियां जी की आंखों के सामने उनके सारी जिंदगी के पन्ने खुद ब खुद पलटने लगे
उन्हें याद आया किस तरह से उन्होंने अपने मां-बाप को खर्चे के डर से अपने साथ न रख कर अपने छोटे भाई के पास रहने दिया था।
अपनी बीवी के मना करने के बावजूद जायदाद का बड़ा हिस्सा बेईमानी से अपने नाम करवा लिया था।
किस तरह अपने बेटे की शादी में गाड़ी न मिलने की वजह से बारात को लौट आने की धमकी दे कर अपना उल्लू सीधा किया था।
किस तरह से पैसे को हमेशा हर किसी से ऊपर माना था।
कभी उन्होनें किसी जीव को जीव नहीं समझा,बस अपने आप को और अपनी बात...
इससे पहले अधिकारी अपनी किताब से उनके कर्मों का पृष्ठ खोल कर बताते, मियां जी की आंखों के सामने उनके सारी जिंदगी के पन्ने खुद ब खुद पलटने लगे
उन्हें याद आया किस तरह से उन्होंने अपने मां-बाप को खर्चे के डर से अपने साथ न रख कर अपने छोटे भाई के पास रहने दिया था।
अपनी बीवी के मना करने के बावजूद जायदाद का बड़ा हिस्सा बेईमानी से अपने नाम करवा लिया था।
किस तरह अपने बेटे की शादी में गाड़ी न मिलने की वजह से बारात को लौट आने की धमकी दे कर अपना उल्लू सीधा किया था।
किस तरह से पैसे को हमेशा हर किसी से ऊपर माना था।
कभी उन्होनें किसी जीव को जीव नहीं समझा,बस अपने आप को और अपनी बात...