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मैं कितने दिन और
झीलों और पार्को का शहर बैंगलोर, एक ऐसा शहर जिसकी हजारों झीलें और बड़े बड़े पार्क आज भी गवाही देते हैं , माना की उनमें बहुत से झीलें अमने असतित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं । लेकिन आज इस शहर की पहचान को आइ टी ने छीन लिया है इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी इस शहर की नई पहचान है।
आज बहुत सारी झीलें पहले ही अपना अस्तित्व खो चुकीहै और कुछ खोने की कगार पर है । ऐसे में अगर कोई झील अगर कोई झील कुछ ह्द तक अपना अस्तित्व अगर बचा पाई तो इसका पूरा श्रेय वहां के लोगों को देना बनता है।
ऐसी ही एक झील है हिसारघट्टा लेक जो लगभग पांच साल पहले अपना अस्तितव खोने की कगार पर थी।
लेकिन जब कुछ दिन पूर्व मैंने वहां की की तो उसे पानी से लबा लब देखकर मन प्रफुल्लित हो गया ।
ये स्थानिय लोगों और प्रसासन द्वारा किया गया सकारात्मक प्रयास है। प्रयावरण की रक्षा हर व्यक्ति का दायित्व और कर्तव्य है । जिस तरह हम उम्मीद करतों हैं हमें ताजा हवा पानी बिना रोक टोक मिलती रहे हमें पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए और पालिथिन यानी प्लास्टिक का इस्तेमाल करना रोकना चाहिए । आज पृथ्वी का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिससे गलेशियर पिघल रहे हैं और समुंदर किनारे बसे शहरों का समुद्री जल में समाने का खतरा भी बड गया है।
आज पर्यावरण को स्वच्छ और साफ रखने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है । ये साल के 365 दिन जारी रहना चाहिए । एक भी दिन रुकना मतलव हमारी निष्ठा पर सवाल खड़े कर सकता है । छोटे छोटे प्रयासों से हर कोई प्रयावरण को स्कन्छ रखने के यज्ञ में अपनी आहुतियां दे सकता है ।
© Aman1097