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"हाथ मिलाने रुक जाना..."P2:letter1 writer- Srushti Mahajan
हमारी मुलाकात आज मुझे बोहोत कुछ बता गयी नितेश .. बोहोत कुछ । मे हमेशा सोचती थी के मैंने हमारी दोस्ती छोड़के गलती की , तुम्हे दुःखाकर गलती की, मगर तुम्हे तो मे याद भी नही और याद आने के बाद भी तुम एसे behave कर रहे थे जैसे क्या ही थी हमारी दोस्ती ? कौन ही थी मे ? । मे आज बोहोत खूश थी क्योंकि मे आज बोहोत बडे इन्सान का interview लेने जा रही थी मगर मुझे नही पता था के वो इन्सान तुम हो ।
तुम्हे देखकर मे खुश होगयी और थोडी गिल्टि थी मगर तुम तो मुझे पेहचान ही नही पाए । ठिक है , इतने साल हो गए शायद नही पेहचाना होगा ऐसा सोचकर interview के बाद मैंने तुम्हे बताया ,याद दिलाई , मगर तुमने हँसी उडादी मेरी और कोई reaction भी नही दी और वो भी ठिक पर जाने के वक्त, मैंने जब हाथ बढाया तो तुम चले गए । देखा तक नही के मे हाथ मिलाने रुकी हूँ । में तुम्हारे दोस्ती का मान रखकर हाथ मिलाने रुकी थी मगर तुम रुके ही नही । मैंने हमारी दोस्ती का मान रखा मगर तुमने नही रखा नितेश .. नही रखा ।
खैर, तुम्हारी माँ सिढियो से गिर गयी थी । मैंने तुम्हे आवाज लगाई मगर तुम रुके ही नही । बोहोत रोब मे हो आजकल । जाने दो, मैंने उन्हे एडमिट करवा दिया है और हाँ वहा के नर्स से तुम्हे inform करने के लिए केह दिया है । तुम्हारे माँ के तुरंत इलाज के लिए पैसे भी भर दिए है मैंने । तुम्हे ये letter तो कभी नही देने वाली मगर मेरी बाते तुमतक पोहोचे इसलिए लिखती हूँ मगर अब इसकी कोई जरूरत नही । जब दोस्ती ही नही तो .. दोस्ती ही नही ।
- Ovi
© Srushti Mahajan