...

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अपने पराए
कोयल वो परिंदा है जो अपनी मधुर कूक से इंसानों के मन प्रसन्न कर देती है।इतना मीठा बोलने वाली कोयल का रंग काला होता और आंखे एकदम लाल।कोयल की कद काठी कौवे के जैसी ही होती है,और जब तक यह बोले नही तब तक इसे पहचानना मुश्किल होता है।कहते है कोयल अपना घोंसला नही बनाती। जब कोयल को अपने अंडे देने होते है तब वह अंडा देने की मुफीद जगह खोजने निकल पड़ती है। उसकी खोज पूरी होती है कौवे के बनाए हुए घोंसले पर।ऐसा घोंसला जिसमे थोड़ा वक्त पहले ही अंडे दिए गए हो। कोयल चतुराई से उसमे रखे अंडों में से एक को नष्ट कर देती है और उसकी जगह पर वहां अपना अंडा देकर वहां से दूर चली जाती है। इधर कौआ अपने अंडो के साथ कोयल के अंडे को भी सेकता रहता है। समय आने पर अंडों से चूज़े निकलते। कौआ बड़ी पाबंदी से उनका पालन पोषण करता है। जब वे चूज़े उड़ने के काबिल हो जाते है तब कोयल वहां आती है और वहां बोलने लगती है। कौवे उसे भगाने की कोशिश करते है,परंतु वह उन्हें चकमा देकर उन बच्चों के पास आ कूकने लगती है। कोयल का बच्चा अपनी मां की आवाज को पहचान लेता है और वह कौवे को छोड़ कर अपनी मां के साथ उड़ कर चला जाता है। उसी कोयल से एक बार किसी कवि ने पूछा ---
कोयल तू मन मोहनी,
मीठे तेरे बैन।
क्यों तो तू काली हुई,
क्यों है राते नैन।।
अर्थात हे कोयल तुम मन को मोहित करने वाली हो,तुम्हारी बोली (बैन) बहुत मीठी है परंतु तुम्हारा रंग काला और आंखे लाल(राते) क्यों है। यह सवाल सुनकर कोयल जवाब देती है कि ---
जां दिन विधि पैदा कीवी,
तां दिन बिछड़े सैन।
कलप कलप काली हुई,
झुर झुर राते नैन।।
अर्थात हे भाई मेरा जन्म जिस समय हुआ तब से मेरे अपने मां बाप मुझ से अलग हो गए। उसी बात की चिंता करते (कलप) करते मेरा रंग काला हो गया और रो (झुर) रो कर मेरी आंखे लाल हो गई।
वास्तव में अपने तो अपने होते हैं।