अगर ज्ञान को बाटोगे नहीं तो बहुत पछताओगे
#भूलेपाठ
सरस्वती भंडार की बड़ी अपरोप बात ज्यूँ खरछाएं तयूं तयूं बड़े बिन खर्चाएं घटी जात |
वृन्द
यह बात इस कहानी में लागू होती है,कवि वृन्द जी केहतें है की,ज्ञान (knowledge) एक ऐसा भंडार है, यानि खज़ाना है,जिसको जितना खर्चोगे उतना बडेगा,अगर खर्च नहीं करोगे, तो उतना घटेगा,यानि कम होता चला जायेगा,
इस बात को मेरी टीचर ने 7 वीं कशा में कहा था,
जिसे मै बहुत दिन के बाद समझी थी,जब मै दसवीं board exam की तयारी कर रही थी,तब मै पूरी class में प्रथम आने के लिए सबसे अपने notes छुपाती थी,और कमज़ोर छात्रों की भी मदद नहीं करती थी,क्योंकी मुझे भय था अगर मेरी जगह वो प्रथम आगये तो सारी मेहनत बेकार जाएगी
इस का पश्चाताप मुझे तब हुआ जब मै अपने दो सहपाठी मीत्रों से दो साल बाद मिली,उनकी माँ फल तरकारी बेच कर घर चला ती थी,मजबूरी में उन्हें 8 वीं कक्षा में ही,विवाह करना पड़ा था, पैसों की तंगी और पढ़ाई में अच्छे न होने के कारण वे कम उम्र में ही विवाहित हो गईं, जब मै उनसेे मिली तो,वे दो महने गर्भ से थीं, मुझे ये दृश्य को देख आँखो से आंसू छलक उठे,केवल 16 साल की उम्र में घर गृहस्ती चला रही थीं वे,
तब मुझे अपने distinction आने पर शर्मिंदगी मेहसूस हुई,क्यों की अगर वे मेरी जगह distinction आतीं तो,उने scholarship मिल जाती,आज उनकी ज़िन्दगी कुछ और हो सकती थी, अगर मै अपने notes share कर लेती तो,इसलिए मुझे लगता है,मेरा ज्ञान का भंडार तो कम होने के साथ साथ कीसी काम नही आया, जीत करके भी मैं जिंदगी की पहेली से हार गई थी,
आशा करती हूं,अगली बार मै जब अपनी सहेलियों से मिलूं,तो उनके बच्चों की पढ़ाई में कुछ मदद कर सकूँ,मार्गदर्शन दे पाऊँ,
पढ़ने पढ़ाने की कोई उम्र नहीं होती अगर वे चाहें तो उनकी भी मदद कर पाऊँ,
धन्यवाद मेरी ये छोटी कहानी और बड़ी सीख पड़ने ने के लिए
ईश्वर सबका भला करे
सरस्वती भंडार की बड़ी अपरोप बात ज्यूँ खरछाएं तयूं तयूं बड़े बिन खर्चाएं घटी जात |
वृन्द
यह बात इस कहानी में लागू होती है,कवि वृन्द जी केहतें है की,ज्ञान (knowledge) एक ऐसा भंडार है, यानि खज़ाना है,जिसको जितना खर्चोगे उतना बडेगा,अगर खर्च नहीं करोगे, तो उतना घटेगा,यानि कम होता चला जायेगा,
इस बात को मेरी टीचर ने 7 वीं कशा में कहा था,
जिसे मै बहुत दिन के बाद समझी थी,जब मै दसवीं board exam की तयारी कर रही थी,तब मै पूरी class में प्रथम आने के लिए सबसे अपने notes छुपाती थी,और कमज़ोर छात्रों की भी मदद नहीं करती थी,क्योंकी मुझे भय था अगर मेरी जगह वो प्रथम आगये तो सारी मेहनत बेकार जाएगी
इस का पश्चाताप मुझे तब हुआ जब मै अपने दो सहपाठी मीत्रों से दो साल बाद मिली,उनकी माँ फल तरकारी बेच कर घर चला ती थी,मजबूरी में उन्हें 8 वीं कक्षा में ही,विवाह करना पड़ा था, पैसों की तंगी और पढ़ाई में अच्छे न होने के कारण वे कम उम्र में ही विवाहित हो गईं, जब मै उनसेे मिली तो,वे दो महने गर्भ से थीं, मुझे ये दृश्य को देख आँखो से आंसू छलक उठे,केवल 16 साल की उम्र में घर गृहस्ती चला रही थीं वे,
तब मुझे अपने distinction आने पर शर्मिंदगी मेहसूस हुई,क्यों की अगर वे मेरी जगह distinction आतीं तो,उने scholarship मिल जाती,आज उनकी ज़िन्दगी कुछ और हो सकती थी, अगर मै अपने notes share कर लेती तो,इसलिए मुझे लगता है,मेरा ज्ञान का भंडार तो कम होने के साथ साथ कीसी काम नही आया, जीत करके भी मैं जिंदगी की पहेली से हार गई थी,
आशा करती हूं,अगली बार मै जब अपनी सहेलियों से मिलूं,तो उनके बच्चों की पढ़ाई में कुछ मदद कर सकूँ,मार्गदर्शन दे पाऊँ,
पढ़ने पढ़ाने की कोई उम्र नहीं होती अगर वे चाहें तो उनकी भी मदद कर पाऊँ,
धन्यवाद मेरी ये छोटी कहानी और बड़ी सीख पड़ने ने के लिए
ईश्वर सबका भला करे