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गुस्ताख़ दिल (Part 1)
मेरे पापा यानी किशोर दास जी, इनकी नई नई नोकरी लगी है। हमने हाल ही में एक नया मकान लिया है और आज वहाँ शिफ्ट हो रहे हैं। "गली के आख़िरी में जो घर है बस वहीं पर आना है।" वो ट्रक वाले को अपने घर का रास्ता बताते हुए फ़ोन पर बोले। मेरी माँ यानी शीतल घर का मुआइना कर रही हैं, किस कमरे में क्या रखा जाएगा वो इन सब चीज़ों को सोच रही हैं और लिस्ट बना रही हैं।। अब बारी आती है लाड़ साहब की यानी मेरे छोटे भाई की। वो तो आते ही गली में बच्चों के साथ खेलने लग गया। लाड़ साहब का नाम हेमंत है पर घर में लड्डू और स्कूल में हेमू के नाम से ज्यादा जाने जाते हैं। जहाँ सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं वहीं मैं अपनी बड़ी बहन शिल्पी के साथ छत पर बैठी सबको टुकुर टुकुट देख रही हूँ।
पाँच जानों का हमारा छोटा सा परिवार (ज्वाइंट फैमिली के अनुसार हमारा 5 जानों का परिवार छोटा ही है।) अपनी ही दुनिया में रहता है। न किसी से कुछ लेना न किसी को कुछ देना। मेरे पिता एक प्रोफ़ेसर हैं, उन्हें पढ़ना और पढ़ाना दोनों ही बहुत पसंद हैं। हर वक्त किताबों को वो अपने सीने अपनी महबूबा की तरह लगाए रखते हैं। घने काले बाल, उसपर लंबी कद काठी, चश्मों के पीछे छिपी दो शरारती आँखें उसपर प्यारी ही मुस्कान और मीठी बोली। हालांकि गुस्सा करते समय या पढ़ाते समय तो बहुत सख़्त किस्में के आदमी लगते हैं जिनसे बच्चे तो क्या जवान और बूढ़े भी...