...

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आलिंगन
कभी किसी को बाहोँ में कस के जकड़ लेना,
जिस्मानी जरूरत नहीं हैं,
कभी रूहें भी आलिंगन माँगती हैँ,
ऐसा आलिंगन जो स्त्री पुरूष से परे हो,
जहाँ भाई का प्यार, बहन का साथ, माँ का लाड़, बाप की डाँट, दोस्त की हमनवाई,
जीवनसाथी की भरपाई हो जायें।
हम बस गलें लगाना चाहते हैं,
पल के लिए ही सही,
ऐसा आलिंगन जहाँ मन से मन बैठ के रो लें,
फिर ठिठके किसी की गोद में सो लें,
नीर बहा किसी अपने का दामन भिगों लें,
वहाँ जिसे मन को धों लें।

मनीषा राजलवाल
© maniemo