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भूख-एक कहानी
भूख को धर्म , जाति में नही बांटा जा सकता है।भूख ही एक ऐसी चीज है जिससे हर वर्ग के लोग वाकिफ होते है। पर गरीब वर्ग इससे हर रोज जूझता है, सुबह होती है तो इस सोच के साथ कि आज खाना मिलेगा या नही और रात होती है तो बस इस ख्याल के साथ कि कल खाना कहाँ से आएगा।
देश दिन-प्रतिदिन उन्नति कर रहा है किंतु यदि हम सर्वेक्षण को पढ़े तो एक समय मे 'सोने की चिड़िया' कहे जाने वाले देश मे प्रतिदिन 1करोड़ 90 लाख लोगों के घर खाना नही बनता है।
यह समस्या सिर्फ एक समुदाय की नही है जो भूखा रह रहा है, बल्कि ये पूरे देश की समस्या है। हम विज्ञान के क्षेत्र मे तो आगे बढ़ रहे हैं, परन्तु आंतरिक विकास में पीछे होते जा रहे हैं।
और अगर इस समस्या को हमे कम करना है तो देश के प्रत्येक नागरिक को इसको अपना कर्तव्य मान कर इसको सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
और इसको कम करने का सबसे पहला उपाय है -बेरोजगारी कम करना।
हमे लोगों को काम देने से पहले ये सोच त्याग करनी पड़ेगी कि ये किस वर्ग का है, किस जाति का है।
क्योंकि अधिकतर लोग अपनी जाति ,समुदाय के लोगों को ही रोजगार प्रदान करने के समर्थन में होते हैं
इस समस्या का एक अन्य कारण समाज का एक वर्ग है- जो है उच्च वर्ग।
ये वर्ग कूप मण्डूकता में डूबा हुआ है। इसका अर्थ ये है कि ऐश-आराम की दुनिया में इस प्रकार खोया हुआ है , कि उसे दुनिया मे हो रही इन घटनाओं की कोई खबर ही नहीं। और जब भी हम उनसे इस विषय मे बात करते हैं तब एक लंबी सूची चैरिटी , टैक्स आदि की थमा दी जाती है । पर मेरा सवाल ये है कि क्या चैरिटी में दी गई धनराशि से जरूरतमन्दों को सहायता मिलती है?नहीं। ये सहायता उन लोगों को मिल ही नही पाती। ये आवश्यक है कि ये धनराशि सही जगह पहुँचनी चाहिए, और इसका दायित्व इसी वर्ग को लेना चाहिए।
"जिस घर में बैठ के हम ऐश से रहते-खाते हैं, अफसोस उसे बनाने वाला भूखा -बेघर फिरता है"।
यदि सभी मिल कर इस बेरोजगारी को खत्म करने की कोशिश करें, तो सम्भव है कि इस देश का आंतरिक विकास हो सके।
"कहानी वो होती है जो घटित हो चुकी हो, जिस दिन ये भूख की समस्या कहानी बन जाएगी उस दिन देश का विकास हो चुका होगा और वो इस देश के लिए ,मेरे लिए हर्ष का दिन होगा"।🙏🙏

"कहानी वो होती है जो घटित हो चुकी हो, जिस दिन ये भूख की समस्या कहानी बन जाएगी उस दिन देश का विकास हो चुका होगा और वो इस देश के लिए ,मेरे लिए हर्ष का दिन होगा"।🙏🙏