...

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अन्दर का सन्नाटा
मस्तिष्क और हृदय मे बात पर आधारित काल्पनिक कहानी

मयूर सुबह से उदास था

मतलब मयूर के पास शब्द नहीं बचे थे
हर किसी ने उसका त्याग करा था सभी उससे दूर होते गए

मस्तिष्क ने हृदय को पूछा क्या बात है तुम इतने उदास क्यों रहने लगे

मैं पत्थर नहीं बन सकता
कहना क्या चाहते हो आजकल तुम्हारी बातें भी घुमावदार होने लगी बोलो क्या बात है ?

लोग दूर होते उसका सीधा असर मुझपर होता
पर कैसे

शरीर को जो खुशी दर्द होता वो बता सकता
पर मैं सीधे तौर पर नहीं कह पाता
मैं भावनाओ से जुड़ा होता हूं

जितनी खुशी
की भावनाए उतना ही मैं खुश रहता
जितना अकेलापन दुःख की ही भावनायें बढ़ती जाती
उतना मैं दुःखी हो जाता
जिसका परिणाम शरीर बीमार होने लगता हर कभी

तुम मुझसे बात कर लिया करो हमारी दोस्त बहुत पुरानी है तुम किसी काम मे व्यस्त रहो

सब को साथ मिलता है ऐसा नहीं होता है
इसका मतलब ये तो नहीं तुम टेंशन मे आओ और शरीर की तबियत बिगाड़ो

बात तो तुम सही कह रहे हो
हमारे विचार अलग अलग होते पर
कम से कम एक दूसरे को सुन तो सकते ना


हृदय ने कहा आज लगा तुम मुझसे बात करना चाहते

फिर मस्तिष्क और हृदय दोनों अक्सर बात करने लगे
यद्यपि ज्यादा बात नहीं होती थी
पर अंदर का सन्नाटा दूर हो जाता था ।

समाप्त
25/6/2024
10:20 रात्रि
© ©मैं और मेरे अहसास