प्रेम और कर्तव्य..
प्रेम और कर्तव्य
मानव जीवन में कभी कभी ऐसा धर्मसंकट आ जाता है जब एक ओर कर्तव्य दूसरी ओर प्रेम में से किसी एक का चयन करना होता है.. इन विकट परिस्थितियों में धैर्यवान धर्मवान व्यक्ति अपने निज स्वार्थ को त्याग कर कर्तव्य पथ पर चल पड़ता है..
यही किया मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने पिता की आज्ञा सिरोधार्य कर वनगमन स्वीकार किया.. और अपने कर्तव्य पथ पर चल पड़े.. आइये अब इसका दूसरा पहलू जानते हैं, श्री भरत प्रभु श्रीराम के अनन्यप्रेमी थे.....
मानव जीवन में कभी कभी ऐसा धर्मसंकट आ जाता है जब एक ओर कर्तव्य दूसरी ओर प्रेम में से किसी एक का चयन करना होता है.. इन विकट परिस्थितियों में धैर्यवान धर्मवान व्यक्ति अपने निज स्वार्थ को त्याग कर कर्तव्य पथ पर चल पड़ता है..
यही किया मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने पिता की आज्ञा सिरोधार्य कर वनगमन स्वीकार किया.. और अपने कर्तव्य पथ पर चल पड़े.. आइये अब इसका दूसरा पहलू जानते हैं, श्री भरत प्रभु श्रीराम के अनन्यप्रेमी थे.....