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मोहब्बत की दुआ.....।
राज और कशिश दोनों एक_दूसरे से काफी मोहब्बत करते थे। पड़ोसी होने के नाते अक्सर एक _दूसरे के घर आते _जाते रहते थे। राज पेशे से प्रोफेसर था, और कशिश महिला चिकित्सक थी।
मगर.... इन दोनों की मोहब्बत के बीच एक तीसरा व्यक्ति आ गया राजीव।जी हां`राजीव`जो कशिश से काफी मोहब्बत करता था। मगर, कोशिश इन बातों से अनभिज्ञ थी।राज और राजीव दोनों काफी अच्छे मित्र थे, किंतु दोनों ही अपनी मोहब्बत की बातें एक_दूसरे से छिपाए हुए थे।
एक दिन की बात है। दोनों मित्र पार्क में बैठकर बातें कर रहे थे। शाम का वक्त था। चिड़ियों की मधुर स्वर के साथ_साथ ठंढी हवाएं भी वातावरण को खूबसूरत बना रही थी।
"राज, एक बात तुमसे पूछनी है।क्या तुमने कभी प्यार किया है?"राजीव ने मुस्कुराते हुए राज की तरफ देखकर बोला। यह सुनकर राज भी मुस्कुराते हुए कहा"हां, मैंने मोहब्बत किया है।एक बहुत ही हसीं लड़की से। वहां देखो वह आ रही है।"। इतना कहकर उसने उत्तर दिशा की तरफ इशारा किया।
राजीव की निगाह उतर दिशा की तरफ गई।तब, उसकी आंखें हैरानी के साथ उस लड़की को देखने लगी।राज का इशारा कशिश की तरफ था।
कशिश मुस्कुराती हुई उन लोगों की तरफ आ रही थी।राजीव को बड़ा ही झटका लगा। जिस लड़की को वह दिल से चाहता है,वह तो राज से मोहब्बत करती है।
उसके सारे सपने तो बिखर गए।खैर, उसने मुस्कुराते हुए कशिश की तरफ देखकर राज से बोला"यार राज, तू तो बड़ा ही भाग्यशाली है।इतनी स्मार्ट लड़की तुझे मिली है।"इतनी देर में कशिश वहां आ गई।
जैसे ही,वह आई।राजीव उठते हुए बोला"अब तुमलोग बैठो, मैं घर जा रहा हूं।"यह सुनकर राज बेचैन होकर बोला"अब तुम्हें कौन सा काम याद आ गया। बैठो ना!"मगर,राजीव उदास होकर बोला"आज नहीं मेरे भाई। फिर कभी तुमलोग को वक्त दूंगा।"
इतना कहकर वह वहां से चल पड़ा। कशिश और राज उसे देखते रह गए। उस समय तक,जब तक वह उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गया।
उस दिन की बाद से राजीव ने धीरे _धीरे राज से मिलना_जुलना बंद कर दिया।एक बार जब राजीव कई दिनों तक दिखाई नहीं दिया,तब राज उससे मिलने उसके घर गया।
वहां पर राजीव की मां उसे देखकर बोली"आओ बैठो राज।कैसे हो बेटा?"इतना सुनकर राज बोला"आंटी जी, मैं तो ठीक हूं।मगर, मेरा दोस्त कहां है? दिखाई नहीं दे रहा है।"वह बड़ी ही हैरान था।
यह सुनकर राजीव की मां बोली"क्या बताऊं बेटा, पता नहीं राजीव को क्या हो गया था? एकदम गुमसुम सा रहता था। कुछ बताया भी नहीं।"इतना कहकर वह उदास हो गई।मगर, थोड़ी देर बाद वह बोली"पर, तुम चिंता मत करो।वह अमेरिका चला गया है। वहां वह अपने पिता का बिजनेस संभालेगा,और अगले सप्ताह मैं भी चली जाऊंगी।"
यह सुनकर राज उदास होकर बोला"मगर.... राजीव मुझे बिना बताए कैसे चला गया? खैर, कोई बात नहीं है।"इतना कहकर वह जाने ही वाला था कि राजीव की मां उठते हुए बोली"रुको राज बेटा।"इतना कहकर उन्होंने आलमारी खोला, और उसमे से एक चिट्ठी निकाली। फिर उसे राज को देती हुई बोली"बेटा राज, यह चिट्ठी राजीव ने तुम्हारे लिए लिखा है। मुझसे बोला कि तुम्हें दे दूं।"
चिट्ठी लेकर राज बड़े ही भारी मन से वहां से चला गया। लेकिन, रास्ते में बस... वह राजीव के बारे में सोचता हुआ अपने घर गया।उस दिन रविवार था। इस कारण, वह अपने कमरे में जाकर चिट्ठी को पढ़ने लगा।फिर एक_एक शब्द उसके मन और शरीर पर भारी पड़ रहें थे।पत्र इस प्रकार था।
"प्रिय राज,
आशा करता हूं।तुम खुश होगे। मै जानता हूं, तुम्हें इस बात से दुःख पहुंचा होगा की मै तुम्हें बिन बताए ही अमेरिका चला आया।मगर... मैं क्या करता? तुम्हें याद होगा शायद,एक बार मेरी महबूबा के बारे में तुमने पूछा था।तब .... मैंने कहा था कि एक दिन बता दूंगा। उस दिन,जब तुम कशिश के बारे में मुझे बताएं।तब, सच कहता हूं मुझे अच्छा नहीं लगा। इसी वजह से मैं वहां से चला आया।कारण.... कशिश से मैं भी प्यार करता हूं।लेकिन.... मेरी दोस्ती से बढ़कर मेरी मोहब्बत नहीं है। इसलिए, मैंने हमेशा _हमेशा के लिए तुम्हारी और कशिश की जिंदगी से दूर जाने का फैसला लिया।मेरी मोहब्बत की दुआ है,तुमलोग हमेशा खुश रहना।
तुम्हारा मित्र,राजीव।"
पत्र पढ़कर राजीव की आंखों से आंसू की बूंदे टपक रही थी।राजीव की त्याग के आगे वह खुद को बेबस महसूस कर रहा था।
: कुमार किशन कीर्ति।


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