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मेरा हर सफ़र
अब मेरी मंज़िल तक नहीं पहुंचता..
जिस दिन से तुम हमें बीच सफ़र पर छोड़ कर अपनी जन्नत की ओर चल दिए थे..उस दिन के बाद से,
जबसे तुम गए हो न तब से बहुत बार सफ़र करना पड़ा है वो भी बिल्कुल अकेले ख़ुद के साथ क्योंकि मेरी अब हिम्मत नहीं होती किसी दोस्त या सहेली के साथ भी सफ़र पर निकलने की... कुछ महीनों तक हमें ट्रेन, गाड़ी, रिक्शा, ई रिक्शा, आटो,बाइक, और ख़ासकर की बस जहां हम ऐसे बिछड़े की दोबारा न मिले, इन सभी को देखकर नफरतों की ज्वाला मेरे भीतर जल जाती थी और हम इस क़दर सुलगते थे कि मेरे आंसूओं कै सैलाब मेरे चेहरे को भिगोता हुआ मेरे दिल के भीतर जल रही आग को भी बुझा पाने में समर्थ न हो पाता था,...