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धर्मनिरपेक्ष या धर्मांतरण
'धर्मनिरपेक्षता' ये शायद एक ऐसा शब्द है जो बनाया ही गया है सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए।
जय श्री राम मेरा नाम सत्यम कुशवाहा है, और ऊपर जो लाइन आपने पढ़ा और मैंने लिखा मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है और होगा भी क्यों?
बड़े-बड़े बुद्धजीवी जिन्होंने हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता का रस घोलना चाहा, आज मुझे ये महसूस हो रहा है की कहीं न कहीं वो रस जहर में परिवर्तित हो गया है।
खैर उन बड़े बुद्धजीवियों की ही देन है आज सनातन धर्म को धर्म नही आडंबर कहा जाने लगा है ये एक पक्ष है, दूसरा पक्ष है की भारत धर्मनिरपेक्ष देश है यहां हर धर्म के लोगो को आजादी है परंतु सोचने का विषय ये है क्या इतनी आजादी है इन्हें की आप जबरन धर्मांतरण करवाने लग जाए?

*आइए इतिहास में झांकने की कोशिश करते है---
ये सवाल मैं इतिहासकारों से पूछना चाहता हू वो सभी बुद्धजीवी कहा थे उस वक्त? जब कट्टरता अपने चरम पर था, सनातन धर्म के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की जा रही थी, हमारे ग्रंथ जलाए जा रहे थे, मंदिरो का विध्वंस किया जा रहा था। मुझे लगता है शायद वो इंतजार कर रहे होंगे की उन्हे इतिहास लिखने का एक नया विषय मिल जायेगा।
और वो इतिहास भी किस तरीके से पेश किया गया है की वो आक्रांता ही वजह थे जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाई, हसी आती है ऐसे इतिहासकारों पर, नहीं-नहीं शायद इस शब्द की गरिमा को ठेस पहुंचेगा इतिहासकार नही धोखेबाज ये शब्द इनके लिए सही बैठेगा। क्योंकि इन्होंने धोखा किया है आने वाली पीढ़ियों के साथ उनसे सच छिपाकर और झूठ बेचकर।
जिस धरा ने चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य, महान अशोक, श्री कृष्ण, और श्री राम जैसे अनगिनत अमूल्य उपहार इस संसार को दिए है उस देश को ये आक्रांता बनाएंगे?

चलिए, इसको भी दरकिनार करते है क्योंकि बीती बातों को लेकर कभी आप भविष्य नहीं सुधार सकते लेकिन इससे भी आप इंकार नहीं कर सकते की बीती बातों से सीखे बगैर आप भविष्य नहीं संवार सकते।

*अब हम आज के धर्मनिरपेक्ष भारत को राजनीति से जोड़कर देखते है---
हम आज के भारत की बात करते है तो बदला कुछ नही है धर्मनिरपेक्ष का मतलब वही है सनातन को कमजोर करना बस परिभाषा बदल दी गई है, सभी समुदाय के लोग अपने-अपने राग अलापने में लगे है, अलग-अलग पार्टियां अपना चुनावी विषय ढूंढ रही है हम सत्ता में आएंगे तो यह मंदिर बनवाएंगे वहा मंदिर बनवाएंगे, आप ये शर्त क्यों रख रहे है भाई? प्रेम में सौदा किस बात का आपको अपने धर्म से प्रेम है तो सत्ता हो या न हो क्या फर्क पड़ता है? आप अपने पार्टी फंड से भी मंदिर निर्माण करवा सकते है नही विशालकाय तो अपने निजी जमीन पर बनवाइए पूजन स्थल फिर तो पता लगे कितना प्रेम है आपको अपने धर्म से, हर धर्म के लोग अपने धर्म के लिए समर्पित हो तब कोई दिक्कत नहीं, बस दिक्कत लोगो को तब हो जाती है जब सनातन जाग उठता है, इससे पहले सब कुछ धर्मनिरपेक्ष है, धर्मांतरण भी धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है चाहे कश्मीर में हुआ नरसंहार भी धर्मनिरपेक्षता का एक जीता जागता उदाहरण है।
राजनीति से जोड़कर देखते है तो मालूम पड़ता है इस देश की विडंबना ही यही है कोई भी सरकार हो वो धर्म के आधार पर जाति के आधार पर वोट बैंक तो बनाना जानते है लेकिन जमीनी स्तर पर वो धर्मनिरपेक्ष देश बनाना ही नहीं चाहते क्योंकि उनका मुद्दा ही खत्म हो जाएगा, फिर वो किस मुद्दे पर चुनाव लडेंगे।

*अब बेहद महत्वपूर्ण सवाल अपने आप से---
ये तो आप इतिहास के बारे में पढ़ के आज का हाल देखकर समझ ही गए होंगे की धर्म के मायने क्या है अलग-अलग लोगो का अपना अलग-अलग मत है, कोई धर्म में पैसा देखता है, कोई धर्म में अपना राजनीति चमकाता है तो इतिहासकार धर्म में अपना विषय ढूंढता है लेकिन जरा खुद से पूछिएगा ये सवाल की कब तक? आखिर कब तक यूं ही चलता रहेगा मैं कट्टरवाद को बढ़ावा बिल्कुल नही दूंगा।
मेरा स्पष्ट संदेश ये है सभी सनातनियों को की धर्मनिरपेक्ष का मतलब अपने धर्म को भूलना नहीं है, अपने धर्म पर गर्व और हर धर्म का सम्मान ये है धर्मनिरपेक्ष। और धर्म को राजनीति से जितना दूर रखेंगे और खुद को धर्म के जितना करीब रखेंगे तो मजबूत होगा धर्म, याद रखिए वो पेड़ उतना हरा भरा होता है जितना वो अपने जड़ से जुड़ा रहता है, अपने जड़ से जुदा मत करो खुद को।

एक अंतिम सवाल जाते जाते आपके लिए छोड़ जाता हूं जो धर्मांतरण करवाने पर मिलने वाले चंद रुपए और दूसरे चीजों के लिए बिक जाते है, क्या अगर कल को कोई आपसे इन रुपयों के बदले अपनी मां को घर से निकलने को कह दे आप निकाल देंगे?

•और अन्य समुदाय के लोगो से विनम्र निवेदन है कृपया बिना सोचे समझे टीका टिप्पणी ना करिएगा मैंने सवाल अपने भाई बंधुओं से पूछा है क्योंकि हमारा ही सिक्का खोटा है।
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