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मैने दो चार जगह को अपनी नोट बुक में लिख लिया और ये ठाना के सुबह होने पर इन जगहों पर नौकरी देखूंगी।
अगली सुबह मैं तैयार हो कर बाज़ार चली गई। सारा दिन धूप में घूमने के बाद एक छोटी सी दुकान में नौकरी पक्की हुई । वो एक कपड़ो की दुकान थी जहां पर लोग तो बहुत नहीं आते थे पर बिजनेस अच्छा चल रहा था।
मैं दोपहर में घर आ गई और खुशी हुई कि कहीं तो मुझे काम मिला । उस कपड़ों की दुकान में लगभग मैने दो महीने काम किया । उस दुकान से हटने के बाद मैं एक होटल में काम करने लगी । उस काम में मुझे ज्यादा तजुरबा तो नही था पर वहां स्टाफ कम होने की वजह से रख लिया गया । वहां होटल पूरे दिल्ली में मशहूर था । बड़े –बड़े कलाकार, बिस्नेसमैन और बहुत से टूरिस्ट वहां पर रहने के लिए आते थे।
अब मैं उस रूम को छोड़ कर एक अच्छी बिल्डिंग में रहने लगी थी। होटल में मुझे मेरे काम के अच्छे पैसे मिलते थे। 9:00 बजे से लेकर रात 8:00बजे तक मेरी ड्यूटी का वक्त था। वहां पर लोगो के सेलिब्रेशन के लिए एक बड़ा हाल भी था ताकि वो वहां पार्टी कर सके। मेरा वहां सिर्फ इतना काम था कि मैं अपने ग्राहक को सुबह का नाश्ता और दोपहर का लंच दूं। इसी काम में मुझे लिफ्ट से बार बार ऊपर नीचे जाना पड़ता । सारा दिन इसी काम में मैं व्यस्त रहती ।
मैं उस काम में भी खुश थी । मगर एक दिन देर रात को मैं होटल से घर जा रही थी। यूं तो मैं कभी कभी देर से घर आती थी पर आज कुछ ज्यादा देर हो गई । उस रात जब मैं जा रही थी तब एक आदमी ज़ख्मी हालत में मुझसे टकरा कर गिर गया । मुझे मालूम नहीं था कि उसने मुझे देखा के नही वो मदद करो कह कर बेहोश हो गया । अब मैं क्या करती मुझे कुछ नही समझ आ रहा था किसे बताऊं किसे नहीं। जल्दबाजी में मैेने हॉस्पिटल में ही फोन कर दीया ।
कुछ देर इंतज़ार करने पर एंबुलेंस कर उसे ले गई । उस ज़ख्मी आदमी के साथ कोई नहीं था इसीलिए मुझे न चाहते हुए भी उसके साथ जाना पड़ा। क्योंकि हस्पताल में बिना फॉर्म भरे मरीज़ को दाखिल नहीं करते । मैने वो फॉर्म भरा उसको एडमिट करवा के मैे वहां से घर चली आई ।
घर जाते ही मैंने बाहर की सभी परेशानियों को दूर रख कर अपने ही धुन में खाना बनाया और खाना खा कर सोने चली गई। सोते समय मैं सोचने लगी के तीन साल हो गए और मुझे विनय अभी तक नही मिला । न जाने कहां होगा वो उसे मैं याद भी हूं कि नहीं । क्या पता उसने दूसरी शादी ही कर ली हो । मुझे उसकी जिन्दगी के बारे में कुछ नही पता।
शायद वो मुझसे शादी करना नहीं चाहता था किसी के दबाव में आकर की होगी शादी ।
वो आदमी न जाने कोन था उसकी किसने ये हालत की होगी। का उसे मिलने जाऊं के नही । छोड़ो वो तो चला भी गया होगा ।
सुबह होने पर सीधा होटल चली गई। वहां पर जा कर मैं अपना काम काने लगी । 11:00 बजने के पहले ही मुझे किसी नंबर से बार बार फ़ोन आ रहा था काम पर मोबाइल चलाने से मना किया जाता है इसीलिए मैंने फोन नही उठाया । बार बार फोन आने की वजह से मुझे चोरी से फोन उठाना पड़ा तभी फोन से आवाज़ आती है के जिसे तुम रात को हमारे पास लाई थी वो सुबह होते ही उठ कर चला गया अब हस्पताल का बिल कौन भरेगा । तब मैंने कहा के मैे भर देती हूं पर मैं शाम को आऊंगी। ये कह कर मैंने फोन रख दिया लेकिन फोन करते हुए मेरी मैनेजर मुझे देख लेती है।
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अगली सुबह मैं तैयार हो कर बाज़ार चली गई। सारा दिन धूप में घूमने के बाद एक छोटी सी दुकान में नौकरी पक्की हुई । वो एक कपड़ो की दुकान थी जहां पर लोग तो बहुत नहीं आते थे पर बिजनेस अच्छा चल रहा था।
मैं दोपहर में घर आ गई और खुशी हुई कि कहीं तो मुझे काम मिला । उस कपड़ों की दुकान में लगभग मैने दो महीने काम किया । उस दुकान से हटने के बाद मैं एक होटल में काम करने लगी । उस काम में मुझे ज्यादा तजुरबा तो नही था पर वहां स्टाफ कम होने की वजह से रख लिया गया । वहां होटल पूरे दिल्ली में मशहूर था । बड़े –बड़े कलाकार, बिस्नेसमैन और बहुत से टूरिस्ट वहां पर रहने के लिए आते थे।
अब मैं उस रूम को छोड़ कर एक अच्छी बिल्डिंग में रहने लगी थी। होटल में मुझे मेरे काम के अच्छे पैसे मिलते थे। 9:00 बजे से लेकर रात 8:00बजे तक मेरी ड्यूटी का वक्त था। वहां पर लोगो के सेलिब्रेशन के लिए एक बड़ा हाल भी था ताकि वो वहां पार्टी कर सके। मेरा वहां सिर्फ इतना काम था कि मैं अपने ग्राहक को सुबह का नाश्ता और दोपहर का लंच दूं। इसी काम में मुझे लिफ्ट से बार बार ऊपर नीचे जाना पड़ता । सारा दिन इसी काम में मैं व्यस्त रहती ।
मैं उस काम में भी खुश थी । मगर एक दिन देर रात को मैं होटल से घर जा रही थी। यूं तो मैं कभी कभी देर से घर आती थी पर आज कुछ ज्यादा देर हो गई । उस रात जब मैं जा रही थी तब एक आदमी ज़ख्मी हालत में मुझसे टकरा कर गिर गया । मुझे मालूम नहीं था कि उसने मुझे देखा के नही वो मदद करो कह कर बेहोश हो गया । अब मैं क्या करती मुझे कुछ नही समझ आ रहा था किसे बताऊं किसे नहीं। जल्दबाजी में मैेने हॉस्पिटल में ही फोन कर दीया ।
कुछ देर इंतज़ार करने पर एंबुलेंस कर उसे ले गई । उस ज़ख्मी आदमी के साथ कोई नहीं था इसीलिए मुझे न चाहते हुए भी उसके साथ जाना पड़ा। क्योंकि हस्पताल में बिना फॉर्म भरे मरीज़ को दाखिल नहीं करते । मैने वो फॉर्म भरा उसको एडमिट करवा के मैे वहां से घर चली आई ।
घर जाते ही मैंने बाहर की सभी परेशानियों को दूर रख कर अपने ही धुन में खाना बनाया और खाना खा कर सोने चली गई। सोते समय मैं सोचने लगी के तीन साल हो गए और मुझे विनय अभी तक नही मिला । न जाने कहां होगा वो उसे मैं याद भी हूं कि नहीं । क्या पता उसने दूसरी शादी ही कर ली हो । मुझे उसकी जिन्दगी के बारे में कुछ नही पता।
शायद वो मुझसे शादी करना नहीं चाहता था किसी के दबाव में आकर की होगी शादी ।
वो आदमी न जाने कोन था उसकी किसने ये हालत की होगी। का उसे मिलने जाऊं के नही । छोड़ो वो तो चला भी गया होगा ।
सुबह होने पर सीधा होटल चली गई। वहां पर जा कर मैं अपना काम काने लगी । 11:00 बजने के पहले ही मुझे किसी नंबर से बार बार फ़ोन आ रहा था काम पर मोबाइल चलाने से मना किया जाता है इसीलिए मैंने फोन नही उठाया । बार बार फोन आने की वजह से मुझे चोरी से फोन उठाना पड़ा तभी फोन से आवाज़ आती है के जिसे तुम रात को हमारे पास लाई थी वो सुबह होते ही उठ कर चला गया अब हस्पताल का बिल कौन भरेगा । तब मैंने कहा के मैे भर देती हूं पर मैं शाम को आऊंगी। ये कह कर मैंने फोन रख दिया लेकिन फोन करते हुए मेरी मैनेजर मुझे देख लेती है।
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