...

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प्रेम, ईश्वर और जीवन
ईश्वर भी विरह में है पूर्ण प्रेम के!!!
शुद्ध प्रेम में ईश्वर के सामने जुड़े हुए हाथ
और अपने प्रेम की प्राप्ति के लिए
दिये के साथ जल रहे तुम्हारे हाथ भी,
ईश्वर सब देख रहे होते हैं..

आँखों से बहने वाले एक-एक अश्रु
बढ़ा देते हैं गंगा के बहाव को,
प्रेमी को पुकारते-पुकारते
तुम्हारें भीतर की आँहे
बदल जाती हैं प्रार्थना में,

वो धूपबत्तियां असल में निशानी होती हैं
तुम्हारे हृदय में जल कर
धुआँ-धुँआ हो रहे स्वप्न की,

तुम्हारें द्वारा उनकी मूर्ति को
समर्पित फूल याद दिलाते हैं
तुम्हारें समर्पण की,
उन्हें याद होता हैं तुम्हारें अश्रुओं
से उनके पैरों का प्रक्षालन,

मंदिर की घंटी के स्वर के साथ
ईश्वर सुन लेते है तुम्हारें प्रेमी का नाम भी
तुम्हारें द्वारा की गई
आरती चमक देती हैं तुम्हारें स्नेह को,

असल में इस तरह प्रेम करते
जैसे पुजा करते ईश्वर की
जैसे खोज में हो ईश्वर की,

तुम ईश्वर से आशीर्वाद में
निश्चित प्राप्त करते हो अपने प्रेम को!!
© Mishty_miss_tea