बारिश
मूसलाधार बारिश हो रही थी और वो अपने कमरे में बैठा जल-थल देख रहा था... बाहर बहुत बड़ा लॉन था, जिसमें दो दरख़्त थे। उनके सब्ज़ पत्ते बारिश में नहा रहे थे। उसको महसूस हुआ कि वो पानी की इस यूरिश से ख़ुश होकर नाच रहे हैं।
उधर टेलीफ़ोन का एक खंबा गड़ा था, उसके फ़्लैट के ऐन सामने। ये भी बड़ा मसरूर नज़र आता था, हालाँकि उसकी मसर्रत की कोई वजह मालूम नहीं होती थी। इस बेजान शय को भला मसरूर क्या होना था लेकिन तनवीर ने जोकि बहुत मग़्मूम था, यही महसूस किया कि उसके आस-पास जो भी शय है, ख़ुशी से नाच-गा रही है।
सावन गुज़र चुका था और बारान-ए-रहमत नहीं हुई थी। लोगों ने मस्जिदों में इकट्ठे होकर दुआएं मांगीं, मगर कोई नतीजा बरामद न हुआ। बादल आते और जाते रहे, मगर उनके थनों से पानी का एक क़तरा भी न टपका।
आख़िर एक दिन अचानक काले काले बादल आसमान पर घिर आए और छाजों पानी बरसने लगा। तनवीर को बादलों और बारिशों से कोई दिलचस्पी नहीं थी... उसकी ज़िंदगी चटियल मैदान बन चुकी थी जिसके मुँह में पानी का एक क़तरा भी किसी ने न टपकाया हो।
दो बरस पहले, उसने एक लड़की से जिसका नाम सुरय्या था, मुहब्बत करना शुरू की, मगर यक-तरफ़ा मुहब्बत थी। सुरय्या ने उसे दरखोर-ए-एतिना ही न समझा।
सावन के दिन थे, बारिश हो रही थी। वो अपनी कोठी से बाहर निकला। जांगिया पहन कर नहाए और बारिश का लुत्फ़ उठाए। आम बाल्टी में पड़े थे। वो अकेला बैठा उन्हें चूस रहा था कि अचानक उसे चीख़ें और क़हक़हे सुनाई दिए।
उसने देखा कि साथ वाली कोठी के लॉन में दो लड़कियां बारिश में नहा रही हैं और ख़ुशी में शोर मचा रही हैं। उसकी कोठी और साथ वाली कोठी के दरमियान सिर्फ़ एक झाड़ियों की दीवार हाइल थी।
तनवीर उठा... आम का रस चूसते हुए वो बाड़ के पास गया और ग़ौर से उन दोनों लड़कियों को देखा।
दोनों महीन मलमल के कुर्ते पहने थीं, जो उनके बदन के साथ चिपके हुए थे। शलवार चूँकि लट्ठे की थीं इसलिए तनवीर को उनके बदन के निचले हिस्से के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल का पता न चल सका।
उसने पहले किसी औरत को ऐसी नज़रों से कभी नहीं देखा था, जैसा कि उस रोज़, जबकि बारिश हो रही थी, उसने उन...
उधर टेलीफ़ोन का एक खंबा गड़ा था, उसके फ़्लैट के ऐन सामने। ये भी बड़ा मसरूर नज़र आता था, हालाँकि उसकी मसर्रत की कोई वजह मालूम नहीं होती थी। इस बेजान शय को भला मसरूर क्या होना था लेकिन तनवीर ने जोकि बहुत मग़्मूम था, यही महसूस किया कि उसके आस-पास जो भी शय है, ख़ुशी से नाच-गा रही है।
सावन गुज़र चुका था और बारान-ए-रहमत नहीं हुई थी। लोगों ने मस्जिदों में इकट्ठे होकर दुआएं मांगीं, मगर कोई नतीजा बरामद न हुआ। बादल आते और जाते रहे, मगर उनके थनों से पानी का एक क़तरा भी न टपका।
आख़िर एक दिन अचानक काले काले बादल आसमान पर घिर आए और छाजों पानी बरसने लगा। तनवीर को बादलों और बारिशों से कोई दिलचस्पी नहीं थी... उसकी ज़िंदगी चटियल मैदान बन चुकी थी जिसके मुँह में पानी का एक क़तरा भी किसी ने न टपकाया हो।
दो बरस पहले, उसने एक लड़की से जिसका नाम सुरय्या था, मुहब्बत करना शुरू की, मगर यक-तरफ़ा मुहब्बत थी। सुरय्या ने उसे दरखोर-ए-एतिना ही न समझा।
सावन के दिन थे, बारिश हो रही थी। वो अपनी कोठी से बाहर निकला। जांगिया पहन कर नहाए और बारिश का लुत्फ़ उठाए। आम बाल्टी में पड़े थे। वो अकेला बैठा उन्हें चूस रहा था कि अचानक उसे चीख़ें और क़हक़हे सुनाई दिए।
उसने देखा कि साथ वाली कोठी के लॉन में दो लड़कियां बारिश में नहा रही हैं और ख़ुशी में शोर मचा रही हैं। उसकी कोठी और साथ वाली कोठी के दरमियान सिर्फ़ एक झाड़ियों की दीवार हाइल थी।
तनवीर उठा... आम का रस चूसते हुए वो बाड़ के पास गया और ग़ौर से उन दोनों लड़कियों को देखा।
दोनों महीन मलमल के कुर्ते पहने थीं, जो उनके बदन के साथ चिपके हुए थे। शलवार चूँकि लट्ठे की थीं इसलिए तनवीर को उनके बदन के निचले हिस्से के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल का पता न चल सका।
उसने पहले किसी औरत को ऐसी नज़रों से कभी नहीं देखा था, जैसा कि उस रोज़, जबकि बारिश हो रही थी, उसने उन...