...

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चारूलता
प्रणय की रात थी-चारो ओर सन्नाटा था।चांद अपने पूरे शबाब पर सफेद दूधिया चांदनी बिखेर रहा था ,मानो वो भी किसी के इंतजार में बैठा हो।
सामने किले में से आती हुई
मदम सी रोशनी पूरे वातावरण को रंगीन बना रही थी।सामने झूले पे बैठी हुई चारूलता अपनी मादकता से वातावरण को हसीन बना रही थी।
चारूलता ....
कभी अपनी जुल्फें सुलझाती कभी अपनी सुरीली आवाज में गीत गाती।खुश होती भी क्यों ना आखिर आज उसकी बारात जो आ रही थी..
एक नई जिंदगी की शुरुआत होने जा रही थी।
जिंदगी भर लोगो के ताने सुनने वाली चारूलता आज महल की रानी बनने जा रही थी।
तभी दूर सेलोगों की बारात आती हुई दिखाई दी ।उत्सुकता में जैसे ही वो छत के छज्जे पे चढ़ी उसका पांव वहां से फिसला और वो जमीन पर आ पहुंची ।महावार और अ लते से सजे हुए पैर खून से लथपथ हो गए।
और मिंट में उसके प्राणपंखेरू उड़ गए....
खुद पे गुमान कर रही चारूलता आज धूल का फूल हो गई ।
और फिर से लोगों की जुबान पे
चारूलता की बेचारगी का जिक्र होने लगा ...
विवाह का माहौल गमगीन हो गया
अब चारूलता की जगह उसकी छोटी बहन महल की मालकिन बनने जा रही थी ।आखिर उसकी कोशिश रंग जो लाई थी ,खून की कीमत लगा के आज प्रणय की रात आई थी। ये प्रणय की रात धोखा,बेवफाई की कहानी चीख चीख कर सुना रही थी।और चारूलता की आत्मा दूर खड़ी रंगमंच का तमाशा देख रही थी.....
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© Abhilasha