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मैं भारत का संविधान हूं......
जिन्दा हूं पर लहू लुहान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
मैंने सबको जीने का अधिकार दिया है।
वंचित शोषित लोगों को सत्कार दिया है।।
महिलाओं को भी सारे हक़ अधिकार दिए,
विक्रत हुए समाज को भी आकार दिया है।।
मैं इस लोकतंत्र की जान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
मैं न होता तो देश की हालत क्या होती।
पुलिस अदालत और वकालत क्या होती।।
संसद के अंदर कैसे देख रहें हों तुम सब,
प्रहरी द्वारा ही मेरी तिल तिल हत्या होती।।
इस लोकतंत्र की पहचान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
मेरी जगह ये फिर से मनुस्मृति लाना चाहती है।
ये सरकार इस मुल्क से मुझे मिटाना चाहती है।।
जागो मेरे देश के वासी इनसे मुझे बचा लो आज,
एकलव्य वाला दौर ये सत्ता फिर लाना चाहती है।।
Sc st ओबीसी की शान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
बाँटके तुम सबको आपस में ये दहाड़ रहें हैं।
मेरे द्वारा रची व्यवस्था जड़ से उखाड़ रहें हैं।।
न जाने कब ये लोग मुझे क़त्ल कर दफना दें,
एक एक करके ज़िस्म से मेरे पन्ने फाड़ रहें है।।
इस मुल्क का बिधि विधान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
हिटलर शाही होगी होगा लोकतंत्र नाम का राज।
जहाँ न्याय न मिले किसी को किस काम का राज।।
सोचो समझो और परखो फिर करो फैसला कोई,
संविधान का चाहिए तुम्हें या चाहिए राम का राज।।
असहाय का अभिमान हूं।
मैं भारत का संविधान हूं।।
- संजय सिफ़र