...

5 views

तन्हा कमरे में मैं और वो तन्हा

इस वक्त रात के 1 बजकर 45 मिनट हो रहे हैं और ”हैदर" मोबाइल को चार्जिंग से निकाल कर लिख रहा है, अक्सर वो अपने ही मोबाइल में नोटपैड पर लिखता है। आप में से बहुत से सोचेंगे भी कि देर रात को लिखने की क्या तुक है भई..? सुबह को किसी माअकूल वक्त निकाल कर आराम से लिख लेते लेकिन अब हम आप सबसे कैसे बताएं कि इस वक्त लिखने का जवाज़ माअकूल वक्त नहीं है...! अरे....नहीं...नहीं नींद का ना आना भी नहीं मगर कह सकते हैं आप कि इस वक्त वैसे भी हैदर को नींद भी नहीं आ रही है तो लिखने बैठ गए। मगर बात ये भी नहीं है।
ख़ैर..! हम बात आगे बढ़ाते हैं–
"हैदर" का घर काफी बड़ा तो नहीं अलबत्ता ठीक है जिसमें इसका परिवार बा-मुश्किल नौ अफ़राद पर मुश्तमिल है, हमने बा-मुश्किल इस लिए कहा है क्योंकि अभी एक भतीजा सिर्फ 2 साल का है। इसके अलावा घर में 3 कमरे लगातार हैं, एक कमरा बीच में है और दो कमरे उसके साइड में। सभी की माकूल पैमाईश है मगर बीच वाला कमरा कुछ हद तक लंबाई में उन दोनों कमरों से बड़ा है।
इस कमरे के एक साइड दरवाज़ा है जो कि बाहर से वो ही दिखाई देता है क्योंकि एक तरफ से दूसरा कमरा आ जाता है जैसा की हमने पहले बताया था और उसी दरवाज़े के पीछे एक अच्छी-खासी चारपाई की जगह है या यूं कहें कि एक चारपाई पड़ी है जो "हैदर" की आराम-देह बिस्तर के रूप में मौजूद है और दूसरी तरफ़ सामान रखा हुआ है।क्योंकि इसे ज़्यादातर स्टोर रूम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है यहां बिस्तर, संदूकें और अनाज की टंकी रखी गई है।
रोजाना की तरह "हैदर" आज भी 10 बजे तक स्टडी किया और फिर सोने की गरज़ से बिस्तर पर आ कर लेट गया। सोने से पहले मोबाइल चलाने की आदत है तो रिचार्ज एक दिन पहले ख़त्म है चुका है इस लिए मोबाइल में पहले से ही download साउथ सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की अल्लावेकंटपुरम MOVIE देखने लगा।
अभी सिर्फ एक घंटा ही हुआ होगा कि आंखें नींद के बोझ से झुकने लगी और "हैदर" मोबाइल ऑफ़ किया और सोने की कोशिश करने लगा और शायद सो ही गया था कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक सी महसूस हुई... खट....खट.....खटाखट..!
नींद एक ही दम खुल गई लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई तो "हैदर" ने दूसरी तरफ करवट बदली तो फिर आवाज़ हुई...खट...खट..खटाखट।
इस बार "हैदर", ने लिहाफ से मुंह निकाल कर आवाज़ दी .....कौन...???
कोई जवाब नहीं आया ...!
फिर बोले...कौन?...पापा जी...!
अक्सर पापा जी अपना मोबाइल चार्ज करने को "हैदर", के कमरे में आ जाते हैं मगर इतना लेट कभी नहीं,वो अक्सर 10 बजे से पहले पहले ही आते हैं।
लेकिन "हैदर", को किसी के कदमों को चाप जाती हुई महसूस हुई तो वो फिर लेट गया ... कि ना जाने कौन होगा ..!
अभी लगभग 10 मिनट मुश्किल से गुजरी होंगी कि इस बार दरवाज़ा पर ज़ोरदार धक्का लगा। और ऐसा लगा कि किसी ने जान-बूझकर ही बहुत ज़ोर से दरवाज़ा खुलवाने के लिए ही धक्का दिया हो और कह रहा हो कि जल्दी उठ!
इस बार वो थोड़ा सा घबरा गया..! वो कभी रात को डरा नहीं मगर आज अचानक थोड़ा सा डर ज़रूर लगा, ना जाने कौन है!
इस बार हम उठ कर बैठ गया और अंधेरे में ही दरवाज़े की तरफ देखने की ना-काम कोशिश करने लगा कि फिर अचानक से धक्का लगा और उसने महसूस किया कि धक्का देकर कोई पलट गया है और चप्पलों की आवाज़ आई तो उसने लपक कर दरवाज़ा खोल दिया .....................!!!!!
मगर........................ये क्या.............???
बाहर कोई भी नहीं था. बल्कि किसी के होने का अहसास भर भी नहीं था। उसने और ज़्यादा हिम्मत दिखाई और बाहर आकर आंगन में आ गया लेकिन कोई भी नहीं था।
फिर उसने सोचा शायद ये उसका वहम ही होगा! ये सोचकर हम ज्योंहि वापसी के लिए पलटे तो महसूस हुआ जैसे सीढ़ियों पर से कोई उसे देख रहा हो...! उसने देखा तो धीरे धीरे सीढ़ियों की ओर चला, देखा कोई नहीं था मगर उसने हिम्मत के साथ छत पर चढ़ना शुरू कर दिया मगर ऊपर भी कोई नहीं था ...सिर्फ चांद की चांदनी का एहसास हो रहा था कि अब वो अकेले नहीं था क्योंकि चांद भी उसके साथ आंख मिचौली कर रहा था। कभी बदल की ओट में छिप जाता और कभी निकल आता और अपने होने का एहसास दिलाता।
जैसे ये सब साज़िश सिर्फ चांद की थी उसे यूं अपने पास बुलाने की ताकि वो उसकी तन्हाई का साथी बन सके। थोड़ी देर ऐसा ही चलता रहा और वो पूरे ध्यान से सारे आस-पड़ोस को खंगालते रहा कि ना जाने कोई सुराग मिल जाए मगर कोई सुराग नहीं, कोई सबूत नहीं और ना कोई आदमी।
"हैदर" थक हारकर अपने कमरे में आ ही रहा था कि उसे ऐसा लगा जैसे ......जैसे..........जैसे कोई कमरे में गया है और वो एहतियात करते हुए भी गलती कर गया जिससे उसे इसका एहसास हुआ क्योंकि उसके कमरे के दरवाज़े का पर्दा हिल रहा था।
वो ये देख कर अबकी बार बहुत डर गया और दिल में आया कि बराबर वाले कमरे में सो रहे अम्मी या पापा में से किसी को आवाज़ लगा लूं मगर उन्हें परेशान करने के ख़्याल से ऐसा करना मुनासिब ना समझा।
और अब वो धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ चल दिया और अब "हैदर" और उस कमरे के दरम्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ एक पर्दे की रुकावट थी। पर्दे के बाहर की ओर "हैदर" था तो पर्दे के अंदर की ओर वो!
उसने पूरी हिम्मत-ओ-सजाअत के साथ एक गहरी सांस ली और बहुत ही फुर्ती के साथ, ऐसी फुर्ती जो कभी उसने अपने अंदर महसूस की ही नहीं थी शायद ये डर था या कुछ और वह खुद ही नहीं समझ सका था और ना वह उस हालात में थे कि कुछ समझ सकता!
ख़ैर बहुत फुर्ती के साथ जैसे ही दरवाज़े से पर्दा हटाया तो सामने सिर्फ रोशनी के सिवा कुछ भी नहीं था। जैसा कमरा छोड़ कर गया था बिल्कुल ऐसा ही था।
अब तो वाकई में उसे डर लगने लगा था और इस बार उसने इरादा कर लिया कि पापा को या किसी को ज़रूर जगा कर आएं मगर अब आवाज़ देंगे तो सारा घर जाग जाएगा और कमरे से बाहर निकलना ...बहुत मुश्किल लगा बल्कि ना-मुम्किन ही लगा।
कोई तरकीब जब दिमाग में ना आती तो "अल्लाह" का नाम लेकर बस लाइट ऑफ की और बिस्तर पर आकर लेट गया।

अभी बस 20 या 30 मिनट मुश्किल से हुई होंगी कि अबकी बार कमरे में ही अलमारी ( जिसमें अक्सर "हैदर", की किताबें ही रखी होती हैं) को कोई बार बार थप-थपा रहा है। ये सुनते ही उसका तो बस दिल जोरों से धड़कने लगा और धड़कनों ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली।
उसने फिर गौर से सुना ..... थप......खर्रर......थप......खररर.......... थप.. थपा.....थप..... खर्र...!!!!!
ये आवाज़ बहुत देर तक वह सुनता रहा फिर ज़हन में एक दम ख़्याल आया...तो बहुत फुर्ती से उसने एकदम लाइट जला दी..........!
तो....
.
.
सामने
....
...
जो
देखा
तो....






पूरे हवास
जैसे
गुम
हो
गए हों.........!!!!


सामने
संदूकों
पर


एक बिल्ली मुंह में चुहां दबाए बैठी थी .....😀😀😀!!!💢


© Zulqar-Nain Haider Ali Khan


#story #humour #horror #fantasy #Love&love #poetrycommunity #Shayari #drama #friendship #latest