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शत्रु की खोज
अकसर हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि दुनिया में शत्रुओं कि कमी नहीं हैं, हर व्यक्ति का कोई न कोई शत्रु अवश्य होता है। शत्रु हमें कभी आगे नहीं बड़ने देता. हमारे कार्यों में बाधा डालता है, हमें नुक्सान पहुंचाता है।

यह सब सुनकर मैं अपने सबसे बड़े शत्रु की खोज में निकल पड़ा। कई दिनों कि खोज के बाद मुझे जो परिणाम मिला. उसे जान कर में चकित रह गया, लेकिन अंत में मुझे मानना पड़ा कि मैंने जिसे खोजा है वही मेरा सबसे बड़ा शत्रु है।
मेरा शत्रु और कोई नहीं बल्कि मैं खुद हूँ। और सिर्फ में ही नहीं आप सभी अपने शत्रु हैं। हम अपने बाकी शत्रुओं को हरा सकते हैं, परंतु यह शत्रु जो हमारे अंदर है इसे हराना अत्यंत कठिन है। हमारी नकारात्मकता हमारी दुश्मन है, हम कोई अच्छा काम करने से पीछे हटते हैं, यह हमारी खुद के प्रति शत्रुता ही तो प्रदर्शित करता है, हमारा मन हमारा शत्रु है जो हमें गलत मार्ग की ओर ले जाता है। उस गलत मार्ग पर चलना बहुत आसान होता है और उसपर चलके हमें बहुत आनंद भी मिलता है, परंतु उस से सफलता नहीं मिलती, हमारी मंजिल नहीं मिलती और अंत में यह रास्ता हमें गर्त में छोड़ देता है। जब हम गलत मार्ग पर मिले आनंद में तल्लीन होते हैं, उस समय हमारा मित्र हमारी अंतरआत्मा हमें पुकारती है, हमें सही मार्ग पर वापस लाने का प्रयत्न करती हैं, परंतु हम में से अधिकतर लोग उसकी आवाज़ पर ध्यान ही नहीं देते और वापस लौटने का मौका खो देते हैं। अगर हम अपने अंतरआत्मा की आवाज़ सुने तो हमारा यह शत्रु हमें कभी पराजित नहीं कर पाएगा। तो आओ अपने शत्रु नहीं अपने मित्र बनें।

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