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गर्भ की यात्रा
यूं तो अनंत शक्तियाओं से युक्त मैं पिता का अंश था परन्तु उन शक्तियों का अहसास मुझे तब हुआ जब मैं मां के गर्भ में पहुंचा। यूं तो मुझ जैसे कई और भी थे परन्तु मैं वो पहला था जिसने मां के अंश को छूआ था । और मेरे जैसे कई। उस दौड़ में हार कर चले गए । मां के अंश से मुझे शक्ति मिली तो मैं दो दो से चार चार से आठ होने लगा फिर मुझे लगा कि मैं अब सक्षम हूं और अनंत को जान‌ सकता हूं तो मैं मां के गर्भाशय की ओर बढ़ने लगा । जब मैं गर्भ में पहुंचा तो लगा कि बच ना पाऊंगा और इस डर से मां के गर्भ से चिपक गया और अपनी पूरी ताकत से अपना‌‌ विस्तार करने लगा । अबतक मां को ‌अहसास होने लगा था कि कुछ बदलाव होने लगे हैं उनके तन में। क्यों कि उनकी मासिक प्रक्रिया में मैंने विघ्न डाला था। वो मैं ही था जिसने मां के तन और मन दोनों में हलचल मचा रखी थी। मेरे गर्भ में होने का अहसास उनको, अब होने जो लगा था । मेरा आकार जैसे जैसे बढ़ रहा था , मुझे हर दिन नयी शरारत सूझती क्यों कि ये तो मुझे ,अनुवांशिक मिला था ना। अब मां परेशान होती मेरी हलचल से, तो कभी प्यार से ‌सहलाती। अब मेरे हाथ पैर हिलाने का मेरी हर हरकत का अहसास उनको होने लगा था और मुझे भी महसूस होने लगा था उनका स्पर्श, सुनाई देने लगी थी उनकी आवाज। मैं पूरी तरह से विकसित हो चुका था ऐसा मुझे लगता था तो अब मेरे मन में मां को देखने की तीव्र इच्छा होने लगी और लोग जिनकी आवाज मुझे सुनाई देती थी कि कौन है ये लोग मुझे देखना है सब को। कभी में सागर में गोते लगाता, कभी खुश होता कि कितनी सुरक्षित जगह हूं कोई परेशान नहीं करता मुझे। पर बाहर की आवाज जिज्ञासा बढ़ा देती कि बाहर की दुनिया कैसी है,सब जानना है मुझे । एक दिन मैंने पूरी ताकत से बाहर आना चाहा ।तब मां को प्रसव पीड़ा का अहसास हुआ और मुझे अहसास हुआ कि मां कहीं ले जाया जा रहा है, शायद अस्पताल होगा। तभी कुछ अजनबी सी आवाजें सुनाई देने लगी और मैं शांत हो गया। पुरंत जिज्ञासा पुनः जाग्रत हुई और मैंने पुनः प्रयास किया, इस बार मां के प्रयासों से मैंने अनंत प्रकाश को देखा और मैं जोरों से चिल्लाया तभी और लोग भी चिल्लाए "बधाई हो बधाई हो" अर्थात मैंने दुनिया में जन्म लिया अब मैं रो रहा था कि मुझे मेरी मां से अलग कर दिया गया है और मैं मां को कहां ढूंढूं । जाने कौन मुझे ले के घूम रहा था , ‌और मैं मां को खोज रहा था, अब बाहर आना अखर रहा था । मां के साथ रहता, ज्यादा सही था । यही सोच रहा था कि अचानक वहीं सुगंध आने लगी वही नरम हाथों का एहसास हुआ, जो मुझे गर्भ में हुआ करता था । मैंने आंखें खोली तो मां मुस्कुरा रही थी उसने मुझे आंचल से लगाया अब मैं खुश और संतुष्ट दोनों था और मुझे देख कर आसपास के लोग भी खुश थे।
© Dr. Urvashi Sharma