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हमारी मां(४)
दूसरे दिन प्रकाश भैय्या एक व्यक्ति को लेकर आए।वे मास्टर थे।उन्होंने कहा 'इतने बड़े शहर में‌चंद्रकांत मास्टर करके ढूंढना आसान नहीं है।आप ज्यादा जानती भी नहीं हैं।'मम्मी बोलीं "मैं कह रही हूं न आज से तीस साल पहले चंद्रकांत मास्टर को मिलना है।"नहीं हो सकता करके वह चलें गये।फिर प्रकाश भैय्या ने मम्मी को समझाया "आंटी तीस साल पहले‌ वे मास्टर थे,पर किस स्कूल या कालेज में और किस मोहल्ले के थे,यह भी मालूम होना चाहिये न"।मम्मी बोलीं "मेरे चाचा ने इतना ही कहा था,औरंगाबाद में चंद्रकांत मास्टर हैं जाकर उनसे पूछ ले।"
‌ तब तो आपके चाचाजी से ही पता पूछ लेते हैं,क्या आपके पास उनका टेलीफोन नं.है?
"नहीं पूछ ले इस दुनिया में नहीं हैं।आखरी बार जब वे मुझ से मिलने आए थे,मैंने बहुत जोर देकर उनसे पूछा तो वे बोले "मैं हूं न तेरा चाचा,तुझे और क्या चाहिये?"फिर भी तुझे इतनी जिद है तो औरंगाबाद जा,वहां तुझे चंद्रकांत मास्टर मिलेंगे उनसे पूछ लेना।"उसके एक सप्ताह बाद ही उनके देहांत की खबर आई।ठीक है,अब हम खुलताबाद के लिए निकलते हैं कहकर आंटी उठ खड़ी हुईं।मम्मी भी साथ चल दीं।प्रकाश भैय्या अपने आफिस के लिए,उनके बच्चे अपने स्कूल के लिए,निकल गये।कुछ देर बाद उनकी पत्नी भी अपने संगीत की क्लास के लिये निकल गयीं।
शाम को सब वापस आ गये।पर मम्मी और आंटी रात के नौ बजे पहुंचे।आते ही दोनों भोजन करने बैठे,भैय्या ने क्या हुआ आंटी,कुछ पता चला? आंटी बोलीं नहीं! हम आज मेरे मामा के घर गये थे।वहां इतना पता चला कि उस समय दौलताबाद,खुलताबाद और वेरूल इन तीन गांवों के पटवारी एक ही थे।किसी भी व्यक्ति के बारे में जानना है तो कोई जोशी जी हैं वे ही बता सकते हैं।पर वे घूमते रहते हैं इसलिए उनका मिलना मुश्किल है।हम कल दौलताबाद जाएंगे।आज बारिश की वजह से भी जरा देर हो गयी" ठीक अब आप लोग सो जाइए कहकर प्रकाश भी लेट गये।हम सब नीचे सो गये।
(शेष आगे)