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छोटू (एक सच्ची कहानी)
छोटू ,की उम्र लगभग आठ या नौ वर्ष की होगी पर एक घटना ने उसको मेरी नज़र में बहुत ऊंचा कर दिया था ,वह अक्सर मेरे घर में आता था मेरे छोटे भाई के साथ उसकी दोस्ती थी वह उसके साथ खेलता और कभी कभी उसके साथ पढ़ने भी बैठ जाता था। मेरी मां कभी उसे कुछ खाने के लिए देती तो वह बहुत संकौंच के साथ बहुत कहने पर लेता था। वह गरीब ज़रूर था पर उसके अंदर स्वाभिमान कूट कूट कर भरा था।

एक दिन जब हल्के जाड़े का मौसम था हवा में थोड़ी ठंडक बढ़ चुकी थी और मैं अपने छत की बल्कौनी में बैठा गुन गुनी धूप का आनन्द ले रहा था तभी मेरी नजर मेरे घर के सामने के मैदान में खेल रहे बच्चों पर पड़ी जहां सब आस पड़ोस के बच्चे वहां पर आकर खेलते रहते थे। उस दिन भी बच्चे खेल रहे थे। पर मैंने देखा छोटू ,किनारे गुम सुम बैठा उन्हें खेलता देख रहा था पर वह किसी और ही दुनिया में था, वह कुछ उदास भी दिख रहा था। मुझे ऐसा इसलिए महसूस हुआ क्योंकि वह अक्सर बच्चों के साथ खेलता ही दिखता था मुझे लगा के शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं है। मैं यही सोचते हुए फिर से गुनगुनी धूप का आनंद लेने लगा । मेरे घर के पास ही शहजादी मौसी का घर था उनके घर से सटे एक छोटी सी बाड़ी भी थी। जिसमें फल के कुछ पेड़ तथा मौसमी सब्जियों के कुछ पौधे भी थे। जिसे बेच कर वह अपना गुज़ारा करती थीं। उनकी बाड़ी की वज़ह से वहां पर बहुत हरियाली थी जिस कारण वहां पर बहुत अच्छा लगता था। शहज़ादी मौसी अपनी बाड़ी की...