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ज्ञान की आवश्यकता..!
बहुत पुरानी बात है, एक बार,एक गुरू और शिष्य एक कक्ष में अकेले बैठें थें,
तब शिष्य ने पुछ लिया "गुरूदेव हमें ज्ञान की आवश्यकता क्यों है?" तब गुरु ने कहां की "वत्स तुम इस कक्ष के सामने अंधेरे कक्ष में जाओ,वहां क्या है बताओ।" ये सुनने के बाद शिष्य आश्चर्य में पड़ गया फिर भी वो कुछ बोला नहीं,और गुरु की आज्ञा का पालन किया,उस कक्ष में प्रवेश किया उसे अंधेरे के व्यतिरिक्त कुछ नहीं दिखा। उसके बाद वो गुरु के पास वापस आया,और गुरु के कुछ कहने से पहले ही कहने लगा की "गुरुदेव उस कक्ष में केवल अंधकार है।" तो गुरु ने पुछा 'क्या सचमुच?' जी गुरुदेव!
गुरुदेव ने कहा, "ठीक है,तुम वहां फिर से जाओ,और देखो वहां और क्या है" और शिष्य फिर उस कक्ष में गया और उसने देखा की उस कक्ष एक बहुत ही बड़ा विकराल सांप बैठा हुआ है। वो भयभीत होकर गुरु के पास दौड़ता हुआ आया,और हांफते हुए कहने लगा कि 'गुरुदेव उस कक्ष में बहुत ही विकराल सांप बैठा हुआ है' तो गुरु ने कहा 'नहीं,ऐसा नहीं हो सकता, तुम कहते हो तो ठीक है मैं तुम्हारे साथ कक्ष में चलता हूं'
उसके बाद गुरु और शिष्य उस कक्ष की ओर चल पड़े। कक्ष में जाने के बाद शिष्य डरता हुआ गुरु के साथ खड़ा हुआ और वो सांप की ओर इशारा करने लगा। गुरु ने कहा "वत्स!तुम कक्ष के बाहर रखा एक दीपक ले आओ" शिष्य कक्ष के बाहर रखा दीपक ले आया तब गुरुदेव ने कहा कि तुम इसे लेकर उस सांप के पास जाओ, शिष्य ने आदेश का पालन किया। फिर भी डरता हुआ,गया और उसने देखा कि जिसे वो सांप समझ रहा था,वो सांप नहीं बल्कि एक मोटी रस्सी थी।
तब गुरुदेव ने एक सुंदर बात कही "पहले तुम्हें इस अंधेरे कक्ष में कुछ नहीं दिखा क्योंकि यहां घना अंधेरा था, फिर जब मैंने कहां की ध्यान से देखो तब तुम्हें अंधकार में ये रस्सी एक विकराल सांप लगी,और जब तुम दीपक ले कर उसके पास गयें तो तुम्हें सत्य ज्ञात हुआ,उसका एहसास हुआ, वैसे ही इस जग में बहुत अंधेरा है, इसमें देखने के लिए तुम्हें मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी,और जब तक तुम ज्ञान रूपी दिपक को अपने अंदर नहीं जलाओगे तब तक सत्य का ज्ञान नहीं होगा,और असत्य को ही सत्य मान बैठोगे,ये ही ज्ञान की परिभाषा है वत्स!!"
written by VANSHIKA CHAUBEY