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मेरे सामने वाली खिड़की
मेरे रूम के सामने सड़क के दूसरी ओर दीवार में लगी खिड़की एक सर्कस के अंदर खुलती थी जहाँ से उनके हाथी साफ़ दिखाई देते थे. वहाँ हाथियों को पिंजरों में नहीं रखा जाता था या जंजीरों में जकड कर नहीं रखा जाता था.

लेकिन कुछ उन्हें शिविर से भागने से रोक रहा था, वह उनके एक पैर से बँधी रस्सी का एक छोटा सा टुकड़ा था.

मैं उन हाथियों को देखकर अक्सर यही उलझन में रहता था कि हाथियों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल सिर्फ रस्सी तोड़ने और शिविर से बचने के लिए क्यों नहीं किया. वे आसानी से ऐसा कर सकते थे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया.

मैं एक जिज्ञासु की तरह इस बात का उत्तर जानना चाहता था,इसीलिए मैं उन हाथियों के प्रशिक्षक के पास गया और उससे पूछा कि हाथी वहीं क्यों खड़े थे और कभी भागने की कोशिश नहीं कई.

प्रशिक्षक ने उत्तर दिया,
"जब वे बहुत छोटे होते हैं तो हम उन्हें बांधने के लिए एक ही आकार की रस्सी का उपयोग करते हैं और उस उम्र में उन्हें पकड़ना काफी होता है. जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें यह विश्वास करने के लिए अनुकूलित किया जाता है कि वे अलग नहीं हो सकते. उनका मानना ​​​​है कि रस्सी अभी भी उन्हें पकड़ सकती है, इसलिए वे कभी भी मुक्त होने की कोशिश नहीं करते.

हाथी इस रस्सी को तोड़कर मुक्त नहीं हो पा रहे थे क्यूँकी समय के साथ उन्होंने इस विश्वास को अपना लिया कि रस्सी तोड़ना संभव नहीं है.

बात बस इतनी सी बतानी है कि हमेशा इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें कि आप जो हासिल करना चाहते हैं वह संभव है. कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया आपको कितना पीछे धकेलने की कोशिश करती है,या आपके रास्ते में कितनी रुकावटें हैं.
अपनी जीत का विश्वास करके...