...

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भरम
आज कल सब मुझे अपने लगते है, मैं उनसे अपने दिल की बात खुले शब्दों में कह देती हूँ,
कभी लगता है कोई मेरा नहीं,
मेरे अंदर का तूफ़ान कोई जान नहीं सकता।
मुझे ठंडे जमे उस पानी पर जमी मोटी काई की परत को ज़मीन समझ लेना ही भलाई लगती हैं। किसी को बहकाने, बरगलने के लिए , खुद को बहकाने के लिए भी।
क्योंकि पत्थर मार के मैं भरम तो तोड़ दूँगी,
पर आज कल किसी को बदसूरती भाती नहीं। भरम ही अच्छे लगते हैं।
© maniemo