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सोच बदलो, नजरिया बदल जाता है।
एक घटना जिसने मेरे सोचने के तरीके को बदल दिया। एक बार मैं ऑटो में अकेली सफर कर रही थी, तभी अचानक दो व्यक्ति जिनके चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई थी। लंबे -लंबे बालों से असभ्य प्राणी मालूम होते थे। कटी -फटी पेंट जिसे आम भाषा में फैशन कहते है और हाथों में कड़े पहने हुए थे।
जाहिर है कि इस तरह के हुलिए को देखकर हर कोई सहम जाए और एक लड़की तो जरूर जब वो अकेली सफर कर रही हो।
उनके उस हुलिए को देखकर मेरे मन में न जाने क्या -क्या शब्द उमड़ रहे थे। जानवर जैसे लोग, अदब नहीं है..... वगैरह। मैं मौन थी आज की दुनिया का भरोसा भी नहीं कर सकते ना।
अचानक किसी के पैरों की टकराहट महसूस हुई। मुझे लगा मेरे ही पैरों से लगी होगी, तो मैंने तुरंत माफी मांग ली शायद उन्होंने सुना नहीं था।
वे फोन पर लगे हुए थे। उनकी भाषा मेरी समझ से परे थी। हां कुछ लफ्ज़ समझ पा रही थी। जैसे वे घर की कलह को बात करके सुलझाने की बात कह रहे हो।
उनकी बाते सुनकर लगा की ऐसे लोग ऐसा भी सोच सकते हैं।
मैंने उनकी बातों से सीखा की रिश्तों में मतभेद हो सकता है पर मनभेद नहीं होना चाहिए।
अब चलते -चलते उनका गंतव्य स्थान पहले आ चुका था। मुझे तो अभी आगे जाना था। जैसे ही ऑटो रुका, वे उतरे और मैंने राहत महसूस की। लगा जैसे भय जा चुका था।
उतरते हुए उनमें से एक ने कहा, 'सिस्टर सॉरी, वो गलती से मेरा पैर आपको लग गया था। उस वक्त मैं बात करने में व्यस्त था। मुझे माफ करना।' ये शब्द सुनकर मैं स्तब्ध रह गई। उस वक्त मैं पूरी तरह से गलत साबित हो चुकी थी। मैं बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी और मैंने सहमति में सिर हिला दिया, कोई बात नहीं।
उस दिन मैंने सीखा की हम कितने गलत हो जाते हैं, किसी के भी बारे में कुछ भी अंदाजा लगाकर।
सही है की सिर्फ इंसान की शक्ल देख कर उसे बयान नहीं किया जा सकता।
आज का इंसान यही तो करता है, रंग देखकर भेदभाव।
उस दिन की घटना ने मेरे नजरिए को बदल दिया था। होने की तो सफेदी में भी दोष हो सकता है और नहीं समझने की काले रंग का गुण भी नज़र नहीं आता है।
वाकई में सोच बदलने की जरूरत है। जिस दिन सोच बदली नजरिया आप ही बदल जाएगा।
ये कहानी बताती है की किसी की परिस्थितियों से हम अवगत नहीं है और बिना कुछ जाने उनके बारे में कुछ भी कहना हमारे गलत नजरिए को बताता है। इस कहानी का उद्देश्य महज इतना ही है की सोच बदलो, नजरिया खुद बदल जाएगा।
मनीषा मीना