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मिस रॉन्ग नंबर - 5
#रॉन्गनंबर

~~~~ पार्ट 5~~~~

(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)

आखरी पल~~~~

उन मोमबत्तियां को भी धकेलता हुआ उस कोमलांगी के पास गया, उसकी सांसे बड़ी मंद चल रही थी । मैने उसे झट से उठाया... और.... किस ताकद से दौड़ पड़ा.... मुझे भी पता नहीं....! ये भी न जानता की कितना तेज दौड़ा.... बस इतना पता है उसे लेकर.... मैं.. अब अपने घर के दरवाजे के सामने खड़ा था।

अब आगे ~~~~

घर के अहाते में उसे रखकर मैंने दरवाजा खोलकर उसको उठाकर घर के अंदर ले गया उसको बिस्तर पर सुलाया.... समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं??? वो तो बेचारी बेहोशी जैसे हालत में थी । अब अंदर से कोई बात नहीं हो रही थी अब कोई शब्द मुझे सुनाई नहीं दे रहे थे बस... । शांत सी पड़ी हुई थी सांसे अब भी मंद मंद चल रही थी ।
क्या करूं ?? कौन है यह ?? क्यों मैं इसको यहां ले आया ?? कुछ समझ नहीं आ रहा था..! बस इतनी संतुष्टि थी कि मैंने उसे बचा लिया...!

पर अब क्या मुझे और किसी की मदद लेनी चाहिए ?? पर किसी ने पूछा की कौन है ये... तो .. तो.... क्या... क्या.. बताऊंगा??? यहां सब मुझे अच्छी तरह जानते है...!
आ..... ह....! उसकी कराहने की आवाज आई...! अब वो हल्के हल्के कराह रही थी । मंद सांसे काफी सामान्य होने की कोशिश कर रही थी । पर वो शायद किसी तरह की ग्लानि में थी । शायद मंत्रों का उसके ऊपर हुए प्रभाव से..... या फिर हो सकता है कोई हाथापाई या मारपीट भी हुई हो...

वाह... चलो अच्छा हुआ बिजली भी आ गई...।
जीत ने घड़ी देखी रात के ढाई बजे थे, मतलब...! जब मैं सोने की तैयारी कर रहा था तब ग्यारह बज रहे थे, और तभी तो फोन बजा और इसने मदद मांगी थी ..... और घर से निकलने के लिए पंद्रह मिनट भी लगे हो... तब भी मैं लगभग तीन साढ़े तीन घंटे इसे बचाने के कार्य में था ???
सोचते हुए उसकी नजर इस लड़की पर गई....
पहली बार वह शांती से उसे निहार रहा था। नैन नक्श एकदम तराशे हुए थे । वैसे तो रंग सांवला नजर आ रहा था, किंतु वह रंग भी उसपर जंच रहा था । चेहरे पर एक अजीब सी शांति नजर आ रही थी उसके, छरहरे बदन की कमसिन... क्या कुछ घटित हुआ था उसके साथ पर इतनी परेशानी में भी बेहद आकर्षक लग रही थी । उसे चूम लेने की इच्छा होने लगी थी जीत को....!

नहीं.... नहीं.... ये सही नही होगा....! पता नहीं ये है कौन??? कही मुझे कोई लेने के देने ना पड़ जाए...!
ये होश में आजाएं तो छुटकारा पा लूं मैं...!
पता नही ऐसी क्या दुर्बूध्धी हो गई थी जो न जाने किसकी आवाज से खींचा चला गया ???
अरे हां ... पर वो अंतरात्मा से कौन आवाज दे रहा था ??? इसे देख कर तो ऐसा नहीं लगता की इसे ऐसे कुछ... पारलौकिक कुछ आता हो ...!
और इसने मुझे क्यों चुना ?? मैने तो इसे कभी देखासा लगता नही....!!! और मेरा नाम भी कैसे जानती होगी ??? कई बार मेरे नाम से ही.. और मुझे ही बुलाया गया... हां... वरना मैं क्यों खींचा चला गया ???
उफ्फ.... दिमाग चकरा रहा है...! और थक भी गया हूं .... ना जाने इसके चक्कर में और क्या क्या सामने परोसा जाएगा ???
ये तो अच्छा हुआ की कल दूसरा शनिचर और फिर इतवार है । कम से कम आराम तो हो जाएगा ।
इसे अब यही सोने देता हूं...! और यहां बगल में सोफे पर मैं भी अब सो जाता हूं। यदि ये जागती है तो नजर भी रहेगी, कल का कल देखेंगे ।
इस सोच से जीत ने अपने आप को आश्वस्त किया, फिर भी एकबार घर के दरवाजे खिड़कियां सब ठीक से चेक कर लिया...! कहीं लड़की भाग न जाएं... उसने एक ताला लेकर दरवाजे को अंदर से जड़ दिया । जब.. अब सब सही है !!! का विश्वास हुआ तब जाकर उसने अपने आप को सोफे पर धड़ाम से झोंक दिया।

उस लड़की को देखते देखते कब नींद लग गई उसे भी पता न चला...
सुबह की तेज गरम सूर्य की किरणे जब चेहरे पर चुभने लगी तब जाकर जीत की नींद टूटी... ! कितना बजा ??? अरे.... दिमाग ने एक झन्न सा एहसास करवाया....! वो लड़की...??? जीत एक तेज झटके के साथ उठ बैठा ।

( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
© Devideep3612