रिमझिम बारिश में अनहोनी।
सुबह के तीन बजने वाले थे। बारिश होने के बाद ठंड बढ़ गई थी और मै घर से निकलने ही वाला था कि अचानक देखते-देखते काली बदलियों ने नीले आसमान को लील लिया। बीच बीच में इनकी गर्जना से रह रह कर बिजली भी कौंधने लगी। मौसम के इस तेवर को देखकर अंदाज लगाया जा सकता था कि मूसलाधार बारिश तो होकर रहेगी।
मैं जल्दी से रेनकोट पहनकर स्कूटी चलाकर रेलवे स्टेशन पहुंचा और स्कूटी वहाँ पार्किंग पर खड़ी करके टिकट लेने गया और बहुत बड़ी लाइन थी और रिजर्वेशन भी नहीं हो पाया था क्योंकि सभी सीटें बुक हो गई थी।
जैसे-तैसे करके कुछ देर बाद मेरा नंबर आया और अपनी टिकट लेकर ट्रेन पकड़ने के लिए भागा और जनरल डिब्बे में खिड़की के पास बैठ गया और सुबह-सुबह वैसे भी ठंड और कोहरा बहुत ही ज़्यादा था।
मुझे बठिंडा जाकर गाड़ी बदलनी थी और गाड़ी एक घंटा देर से आई थी। गाड़ी ने धीरे-धीरे चलना शुरू किया और गार्ड ने हरी झंडी दिखाकर ट्रेन को रवाना किया।
जैसे ही ट्रेन ने चलना शुरू किया तो मैंने भी अपनी खिड़की बंद कर ली थी और जनरल डिब्बे में ज़्यादा भीड़ नहीं होने के कारण सभी खिड़की दरवाज़े बंद थे। हमारे डिब्बे में कुछ गिने-चुने यात्री यात्रा कर रहे थे और क़िस्मत अच्छी होने के कारण सीट भी खिड़की वाली मिल गई थी।
मौसम के तेवर अभी भी बारिश वो भी मुसलाधार बारिश होने का इशारा कर रहे थे। कुछ देर बाद बारिश शुरू हो गई थी और रिमझिम बारिश बस नाममात्र की हुई थी।
बारिश लगभग दस से पन्द्रह मिनट हुई थी और फ़िर मैंने थोड़ी देर सोना ही उचित समझा और बैग से कंबल निकाल कर सो गया और लगभग एक घंटे बाद उठ गया।
जब नींद खुली तो ट्रेन रूकी हुई थी और चाय और पूरी वाले अपना-अपना खाने का सामान बेच रहे थे और मेरे सामने ही पूरी वाले भैया पूरी बेच रहे थे और मैंने एक प्लेट पूरी और आलू की सब्जी देने के लिए कहा और पैसे देकर पूरी पत्तल में लेकर खाने लगा और साथ में गर्मागर्म चाय पीने लगा।
गर्मागर्म पूरी और आलू की सब्जी के साथ बहुत ही टेस्टी आम, नींबू और हरी मिर्च का अचार भी था और ये पूरी और आलू की सब्जी और अचार आदि सबकुछ बहुत ही स्वादिष्ट था। गनीमत रही कि ट्रेन चल पड़ी थी नहीं तो शायद मैं एक या दो तीन प्लेट और खा लेता।
बठिंडा आने में बस लगभग दो घंटे रह गए थे और मैंने बैग में से किताब निकालकर कहानी पढ़ने...
मैं जल्दी से रेनकोट पहनकर स्कूटी चलाकर रेलवे स्टेशन पहुंचा और स्कूटी वहाँ पार्किंग पर खड़ी करके टिकट लेने गया और बहुत बड़ी लाइन थी और रिजर्वेशन भी नहीं हो पाया था क्योंकि सभी सीटें बुक हो गई थी।
जैसे-तैसे करके कुछ देर बाद मेरा नंबर आया और अपनी टिकट लेकर ट्रेन पकड़ने के लिए भागा और जनरल डिब्बे में खिड़की के पास बैठ गया और सुबह-सुबह वैसे भी ठंड और कोहरा बहुत ही ज़्यादा था।
मुझे बठिंडा जाकर गाड़ी बदलनी थी और गाड़ी एक घंटा देर से आई थी। गाड़ी ने धीरे-धीरे चलना शुरू किया और गार्ड ने हरी झंडी दिखाकर ट्रेन को रवाना किया।
जैसे ही ट्रेन ने चलना शुरू किया तो मैंने भी अपनी खिड़की बंद कर ली थी और जनरल डिब्बे में ज़्यादा भीड़ नहीं होने के कारण सभी खिड़की दरवाज़े बंद थे। हमारे डिब्बे में कुछ गिने-चुने यात्री यात्रा कर रहे थे और क़िस्मत अच्छी होने के कारण सीट भी खिड़की वाली मिल गई थी।
मौसम के तेवर अभी भी बारिश वो भी मुसलाधार बारिश होने का इशारा कर रहे थे। कुछ देर बाद बारिश शुरू हो गई थी और रिमझिम बारिश बस नाममात्र की हुई थी।
बारिश लगभग दस से पन्द्रह मिनट हुई थी और फ़िर मैंने थोड़ी देर सोना ही उचित समझा और बैग से कंबल निकाल कर सो गया और लगभग एक घंटे बाद उठ गया।
जब नींद खुली तो ट्रेन रूकी हुई थी और चाय और पूरी वाले अपना-अपना खाने का सामान बेच रहे थे और मेरे सामने ही पूरी वाले भैया पूरी बेच रहे थे और मैंने एक प्लेट पूरी और आलू की सब्जी देने के लिए कहा और पैसे देकर पूरी पत्तल में लेकर खाने लगा और साथ में गर्मागर्म चाय पीने लगा।
गर्मागर्म पूरी और आलू की सब्जी के साथ बहुत ही टेस्टी आम, नींबू और हरी मिर्च का अचार भी था और ये पूरी और आलू की सब्जी और अचार आदि सबकुछ बहुत ही स्वादिष्ट था। गनीमत रही कि ट्रेन चल पड़ी थी नहीं तो शायद मैं एक या दो तीन प्लेट और खा लेता।
बठिंडा आने में बस लगभग दो घंटे रह गए थे और मैंने बैग में से किताब निकालकर कहानी पढ़ने...