हाल देश का
जब लुट रही थी इज़्ज़त उसकी कहां थे वो धर्म के ठेकेदार
हो रही जब इज़्ज़त तार तार कहां थी वो सरकार,
क्या इसी के मत से चलता है तुम्हारा सरोकार?
माना कानून तो है अंधा हमारा
पर सरकार की तो आंखे है चार
फिर क्यों होता है एक सिर का...
हो रही जब इज़्ज़त तार तार कहां थी वो सरकार,
क्या इसी के मत से चलता है तुम्हारा सरोकार?
माना कानून तो है अंधा हमारा
पर सरकार की तो आंखे है चार
फिर क्यों होता है एक सिर का...