पुरानी डायरी
उनदिनों की एक पुरानी डायरी मुझे मिली ।
जब समय भी जवान था।और हम भी।
समय को हम बेफिक्री से जी रहे थे। उफ़ क्या दिन थे ।
वो लड़ना ,झगड़ना, झूठ बोलना सब कुछ
कितना निष्पाप से थे।
मन में कोई ग्लानी भी नही होती थी।
समय निर्दोष था या हमारा मन ये पता चलता ही नहीं था।
डायरी में कुछ पन्ने ख़ाली भी छोड़ रखा था शायद वो कभी वक़्त के साथ लिख लिया जाएगा।
कई पन्नों के बाद कुछ पंक्तिया मिली, पड़ कर हृदय भावविभोर हो गया। थोड़ा विचलित भी हुआ मन।
जैसे वो पुराना वक़्त अभी सामने खड़ा हो।
पंक्तियाँ कुछ यूं थीं:
“तुमसे दूर जाने को मजबूर हूँ। लेकिन तुम से प्यार है । भूलूंगी नही। ख़त लिखेँगे कॉलेज के बाद जब टाइम मिलेगा। ख़याल रखना।" बाई बाई।"
जुदाई और दर्द से भरा,
मिला जुला एक एहसास दिल को जैसे
निचोड़ने लगा।
उस लाल सूखे गुलाब को सूँघते हुए महसूस कर रहा था उस जुदाई के पल को , बरसों से गुलाब एहसासों को अपनी पंखुड़ियों में समेट कर ,क़िताब के पन्नों में समय को कैद कर रखा था।
सूखे लाल गुलाब बरसों से हमारे प्यार का एक ज़िंदा निशानी है।
मन बार बार कहने लगा ,जा ढूंढ फिर से पहली मोहब्बत को,
एक बार मिल यूँ नही ख़त्म हो सकता इश्क़ का सफ़र। जूनून फिर से जागने लगा।
पर...
दिमाग से जब सोचा मैं कल भी लाचार था। मैं आज भी लाचार हूँ।
सब लोग जीवन मे आपने आपने रास्ते आगे निकल गए,
लेकिन ये नादान दिल सीने में अभी भी जैसे एक आस लिए बैठा।
उसे पता नही “सच्चा इश्क़ कभी मुकम्मल नहीं होता"।
सच्चा प्रेम ज़िंदगी भर, ज़िंदगी के साथ , हमेशा रहेगा।
इस अधूरेपन में भी कितना सुकन सा मिलता है दिल को।
© Oshir