चिड़िया और मैं
एक दीर्घ अन्तराल के बाद कुछ लिख रहा हूँ। थोड़ा मन विचलित है जीवन में चल रहे उतार-चढ़ाव से लेकिन इसी मन में एक आशा अभी भी है। इसी आशा की भावना को मजबूत करने के लिए आज आसमान में देखते हुए मेरे ध्यान को मेरे घर की दीवार पर बैठी गौरैया (Sparrow) पर गया। साधारण सी दिखने वाली इस चिड़िया ने सहसा मेरे मन में एक विचार को जन्म दिया कि क्या मैं इसकी भांति मानसिक रूप से आजाद हूं?
क्या ये चिड़िया उड़ते वक़्त सोचती होगी दुनिया के बारे में? क्या इसे फर्क़ पड़ता होगा अपनी बनावट या आकार से? क्या इसके लिए भी कई पैमाने होते हैं जिन पर इसे नापा जाता है, जाने अनजाने? क्या इसे भी बुद्धिमत्ता की परीक्षा पर हर दिन हर बार किसी और से तुलना करके देखना पड़ता है, इसके अपने ही लोगों के द्वारा?
प्रश्न कई उठे हैं मन में, पर उत्तर देने वाला कोई नहीं था और उसने जो कहा (चिड़िया ने) मैं समझा नहीं, थोड़ा ना समझ हूं ना इसलिए।
विडंबना यह थी कि उत्तर चाहिए थे मुझे और देने के लिए कोई राजी ना था, क्योंकि तेजी से बदल रही इस दुनिया में हर कोई आपसे यह अपेक्षा करता है कि आप उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। इस भीड़ में अगर ऐसा नहीं किया आपने, तो आप बहुत पीछे रह जाएंगे। अब सारे उत्तर मुझे खुद खोजने थे, और मैंने ठान लिया कि मैं उन्हें खोजूंगा।
धीरे-धीरे मुझे यह समझ में आया कि जीवन के प्रश्नों के उत्तर हमें अपने भीतर ही खोजने होते हैं। गौरैया की तरह हमें भी स्वतंत्रता और आत्म-विश्वास को अपनाना चाहिए, बिना किसी तुलना या अपेक्षा के। इस सोच ने मुझे अपने जीवन में आगे बढ़ने का एक नया मार्ग दिखाया, जिसमें मैं अपने उत्तर स्वयं खोजूं और अपने सपनों को पंख दूं।
जीवन में कभी-कभी ठहराव आवश्यक होता है। ठहराव में ही आत्म-निरीक्षण और आत्म-मूल्यांकन होता है। इस ठहराव में हमें अपनी कमजोरियों का सामना करना होता है और अपनी शक्तियों को पहचानना होता है। गौरैया की साधारणता में मुझे जीवन की गहराई का आभास हुआ। उसकी उड़ान में मुझे स्वतंत्रता का अहसास हुआ। उसकी निश्चिंतता में मुझे जीवन की सहजता का ज्ञान हुआ।
जीवन के इस सफर में, हमें अपनी पहचान, अपने उद्देश्य और अपनी सीमाओं को समझना होगा। इस समझ से ही हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र हो सकते हैं। जब हम जीवन को पूरी तरह स्वीकार करते हैं, तब हम अपनी सच्ची क्षमता को पहचान सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। यही जीवन की असली खूबसूरती है।
© ifeellost
क्या ये चिड़िया उड़ते वक़्त सोचती होगी दुनिया के बारे में? क्या इसे फर्क़ पड़ता होगा अपनी बनावट या आकार से? क्या इसके लिए भी कई पैमाने होते हैं जिन पर इसे नापा जाता है, जाने अनजाने? क्या इसे भी बुद्धिमत्ता की परीक्षा पर हर दिन हर बार किसी और से तुलना करके देखना पड़ता है, इसके अपने ही लोगों के द्वारा?
प्रश्न कई उठे हैं मन में, पर उत्तर देने वाला कोई नहीं था और उसने जो कहा (चिड़िया ने) मैं समझा नहीं, थोड़ा ना समझ हूं ना इसलिए।
विडंबना यह थी कि उत्तर चाहिए थे मुझे और देने के लिए कोई राजी ना था, क्योंकि तेजी से बदल रही इस दुनिया में हर कोई आपसे यह अपेक्षा करता है कि आप उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। इस भीड़ में अगर ऐसा नहीं किया आपने, तो आप बहुत पीछे रह जाएंगे। अब सारे उत्तर मुझे खुद खोजने थे, और मैंने ठान लिया कि मैं उन्हें खोजूंगा।
धीरे-धीरे मुझे यह समझ में आया कि जीवन के प्रश्नों के उत्तर हमें अपने भीतर ही खोजने होते हैं। गौरैया की तरह हमें भी स्वतंत्रता और आत्म-विश्वास को अपनाना चाहिए, बिना किसी तुलना या अपेक्षा के। इस सोच ने मुझे अपने जीवन में आगे बढ़ने का एक नया मार्ग दिखाया, जिसमें मैं अपने उत्तर स्वयं खोजूं और अपने सपनों को पंख दूं।
जीवन में कभी-कभी ठहराव आवश्यक होता है। ठहराव में ही आत्म-निरीक्षण और आत्म-मूल्यांकन होता है। इस ठहराव में हमें अपनी कमजोरियों का सामना करना होता है और अपनी शक्तियों को पहचानना होता है। गौरैया की साधारणता में मुझे जीवन की गहराई का आभास हुआ। उसकी उड़ान में मुझे स्वतंत्रता का अहसास हुआ। उसकी निश्चिंतता में मुझे जीवन की सहजता का ज्ञान हुआ।
जीवन के इस सफर में, हमें अपनी पहचान, अपने उद्देश्य और अपनी सीमाओं को समझना होगा। इस समझ से ही हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र हो सकते हैं। जब हम जीवन को पूरी तरह स्वीकार करते हैं, तब हम अपनी सच्ची क्षमता को पहचान सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। यही जीवन की असली खूबसूरती है।
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