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कालचक्र द्वारा स्त्री भोग और प्रकार समस्त काल वर्णन करता है।।
कालचक्र विभाजन स्त्री का स्त्री काल द्वारा विचारकाल में कुल वैशयाकाल,श्रापकाल पुन्य काल , स्त्रीकाल रखैलकाल , नरकाल ,रछसकाल
देवकाल और दैवीकाल , बंधन काल, विपधाकाल , कमजोरीकाल , मजबूरी काल , निर्धन काल,धनीकाल, ईमानकाल भृशटकाल , मृत्युकाल, जीवनकाल , कर्मकाल , जन्म काल , अंतकाल

, वैशयकाल , सौतनकाल रखैलकाल , अपूर्णकाल दुर्लभकाल , सौभाग्य काल , दुर्भाग्यकाल , आत्मा काल, प्राप्ति काल, नारी नरकाल , पत्नी पति काल , प्रेमिका प्रेमी काल, मोक्ष काल ,बाज़रूकाल आतमकाल , संन्यास काल , विचारकाल,वसनाकाल, संभोग काल ।। इन कालो द्वारा इस्त्री के प्रकार और उनके भोग।।
स्त्री के प्रकार इस प्रकार है।।
सर्वगुण संपन्न जिसका वास्तविक स्त्री भोग लगाना चाहिए।।
प्रेम भोग लगाने का एक असम्भव प्रयास सर्वगुण संपन्न द्वारा।। जो कि देवी ही हो सकती है क्योंकि यह एक स्त्री द्वारा असम्भव प्रेम प्रयास हो जाता है।।
क्योंकि आज पूरी दुनिया प्रेम हीन क्योंकि देवियों का आस्तित्व विलीन हो।। जिसके प्रेम भोग ना लग पाने की वजह से यह एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त है।। क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों अपना कर्तव्य और करपद भूलाकर वसना भोग लागाकर वासना मयी होचुके है।।
#वसनामयी
#सरवगुणसमपन्न
#प्रेमभोग विफलता
#सरवश्रेषठभोग
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