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एक अलौकिकता की खोज व दास्तान भाग -२
जो उसको स्त्रीत्व के द्वारा अस्तित्व की आसीमता का बोध व आशय स्पष्ट करने के लिए अतिआवश्यक है ताकि वह सिद्ध होकर स्त्रीत्व से अस्तित्व की खोज व आलेख की आसीमता का समर्पण संग्रह की प्रस्तुति व पेशकश प्रकृट करके उस पर अपना स्वामित्व पाकर अधिपति पा सके मगर वह उसके अस्तित्व के द्वारा किए गए प्रत्येक प्रहार का हिसाब स्त्रीत्व उसके अस्तित्व की वास्तविक आसीमता के रूप में अर्थात शून्य प्रेम काव्य प्रस्तुती संग्रह बनकर उसके समक्ष प्रकट होकर इस गाथा के लेखक के
समक्ष एक हिनका बनकर प्रेम में उनके सम्मान में गाथा अपने पूज्य स्वामी के द्वारा दिए श्राप को
अनन्त व असंभव करने में वह सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सर्वोच्च सर्वप्रथम सर्वोपरि है क्योंकि वास्तविकता में वह शून्यनिका हिनका नंपुकीय आहुतिका कलियौता में भी वह बैकुंठधाम में जाकर सिद्ध होकर गाऊ बनकर वह शून्यनिका हिनका उसका स्त्रीत्व तथा असतिव दोनों ही अस्तित्व की आसीमता में क्योंकि वह स्त्रीत्व की शून्यता में अपने कालश्रोथ विभकितश्रोत लिगश्रोथ जातिश्रोत सबकुछ शून्य में परिवर्तित कर वह बैठकुन्धामी में प्रवेश कर सिद्ध होकर एक गौ मे परिवर्तित होकर सिद्ध हो गई है।।
#सिध्दगाऊ🐄
एक अलौकिकता की खोज व दास्तान बन गई तथा नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका बनकर आखरी उम्मीद की छवि बन प्रज्वलित व उज्जवल व सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सर्वोच्च सर्वप्रथम परमात्मिका बनकर हमेशा के सिद्ध हो गई।।

🔴तथा वह सिद्ध होकर उसके तत् पश्चात् वह अपने अस्तित्व अर्थात स्त्रीत्व तथा नारित्व की आसीमता को प्राप्त होकर बैठकुन्धाम सीधार कर वह अपनी योनि व चूत में से इच्छा व स्वार्थ का नमूना
🔴निशान समाप्त कर वह शून्य तुच्छीका व शून्यनिका शून्यनिकाविध्वंकीय होकर अपने अस्तित्व व स्त्रीत्व दोनों को ही प्राप्त हो जाती है अर्थात वह शून्य होकर प्रेम स्मारक बैठकुन्धाम सीधार कर गोऊ लोक में जाकर कालचकृ स्थापित कर स्वयं को सून्य घोषित कर वही निर्माणक व स्थापित होकर एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त का अन्त कर उसे असंभव से परिवर्तित कर संभव कर आरंभ व सामाप्त दोनों ही सुनिश्चित कर देती है।।