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महा बलिदान
सन 1730 के सितंबर महीने की बात है ।जोधपुर महाराजा अभयसिंहजी महाराज दीवाने खास में बैठे ,अपने खास सरदारों से मेहरान गढ़ (जोधपुर के दुर्ग का नाम) के मरमत के बारे में सलाह सूत कर रहे थे। मरमत की सामग्री ,गढ़ में आ चुकी थी। तब सीमेंट की जगह चूना काम में लिया जाता था। मारवाड़ प्रांत में बोरुंदा के इलाके में चूना प्रचुर मात्रा में उच्च गुणवत्ता का मिल गया।अब चूना को पकाने के लिए ईंधन की जरूरत थी। महाराजा अभयसिंहजी ने,ईंधन की व्यवस्था करने के लिए, राजमंत्री गिरधरदास भंडारी को हुक्म दिया। दूसरे दिन राजमंत्री ईंधन की व्यवस्था के लिए अपने लाव लश्कर के साथ निकल पड़े। उन्होंने पाया की जोधपुर शहर से पूर्व दिशा में 24 किलोमीटर दूर खेजड़ी के वृक्षों का सघन वन था।
तब से लगभग दो सो बरस पहले, जांभोजी नाम के संत महापुरुष ने बीकानेर जिले के नोखा तहसील के समराथल धोरा...