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नशे की रात ढल गयी-17
(17) .. एकबार पिता जी के एक शिव-भक्त मित्र ने उन्हें एक उपाय सुझाया कि पुत्र-प्राप्ति के लिए अपनी व्यथा एक पत्र में लिखकर उसे शिवजी के नाम से मन्दिर में छोड़ दें..और एकदिन बाबूजी ने महाराजगंज के प्राचीन शिवालय में शिव जी के नाम से एक पत्र प्रेषित कर दिया.. इसतरह बहुत मन्नतों के बाद मेरा जन्म हुआ । मेरे इतने सात्विक नामकरण का रहस्य भी शायद इसी घटना से जुड़ा रहा होगा । अब इस कहानी में कितनी सच्चाई है और कितनी मनगढ़ंतता-- मुझे मालूम नहीं, लेकिन इतना सच तो जरूर है कि सारे देवताओं में मेरे प्रिय देवता बेशक महादेव ही रहे हैं। महादेव के स्वभाव का थोड़ा सा अंश मेरे भीतर भी मौजूद है । मैं भी बहुत जल्द क्रोधित होकर शांत हो जाता हूँ । बाबूजी की पाबंदियों से लेकर पत्नी की हर तानाशाही को मैंने इसी स्वभाव से अबतक झेला है ।मेरा चरित्र भी महादेव की तरह विरोधाभासों से भरा रहा है। मेरे स्वभाव में...