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जल के भाती मन में निरंतर शोर चलता हो,
वायु के भाती मस्तक में बहुत सारे सोंच चलते हो,
तब इस धरणी के जैसे स्थिरथा मन में आ ही जाती है...
जब टहराव खुद को रखने की दृढ़ता को मन में ठान लेते है||
मिट्टी के भाती हम खुद को जोड़ लेते है,
ऋतु के भाती हर ऋतु को खुद में समेट लेते है,
तब इस प्रकृति के शांत मन के भीतर आ ही जाती है...
जब टहराव खुद को रखने की दृढ़ता को मन में ठान लेते है||