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जिस प्रकार सूरजमुखी का फूल 🌻 सूरज के ऊर्जा से आकर्षित होकर उनकी ओर मुड़ जाता है,ठीक उस प्रकार ही जब सत्यनिष्ठ प्रेम में जब आकर्षण समाप्त हो जाता है,तब आकर्षण समाप्त होने पर उस तरफ़ से आसक्ति समाप्त हो जाती है, बिलकुल वैसे ही जिस प्रकार नवीन सूर्यमुखी पुष्प सूरज के दिशा की ओर आकर्षित होता है और बाद में आकर्षण के बाद सूर्य के तरफ से प्रेम भी, इसलिए आकर्षण और सत्यनिष्ट प्रेम का एक जीता जागता उदाहरण है : सूर्यमुखी का पुष्प इसलिए तो नाम ही "सूर्यमुखी" है।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जब कोई किसी से आकर्षित होता है तो वह आकर्षण है या केवल इनका भान नहीं होता है लेकिन जब आसक्ति धीरे धीरे समाप्त होने लगती है तो वह केवल आकर्षण मात्र था इसलिए आकर्षण हमेशा प्रेम नहीं हो सकता, आकर्षण तो सीमित ऊर्जा वह एक समय पर समाप्त हो जाता है, लेकिन प्रेम तो अनंत है सूर्य की तरह और सूर्यमुखी का पुष्प आकर्षण का प्रतीक है जो कहीं कली से पुष्प और फिर सूखता हुआ वृद्ध फूल बन जाता है।
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