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गिर्दाब-भवँर
फिरदौस-ए-द्वारे-जन्नत के द्वार
रक़ाबत-शत्रुता,प्रतिद्वंद्विता
बज़्म-सभा
क़ल्ब-ए-फ़िगार-व्यथित मन
पमाले'आरज़ू-कुचली हुई तमन्ना
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किस्से मेरी उल्फत के जो मरकुम है सारे
आ देख तेरे नाम से मौसम है सारे।
बस इसलिए हर काम अधूरा ही पड़ा है
ख़ादिम भी मेरी कौम के माखदुम है सारे।
अब कौन मेरे पाऊँ की जांज़ीर को खुले
हकीम मेरे बस्ती के भी महकुम है सारे।
शायद ये ज़र्फ़ हैं जो ख़ामोश हैं अबतक
वरना तो तेरे ऐब भी मालूम हैं सारे।
हर ज़ुर्म मेरी जात से मंसूब हैं
क्या मेरे सिवा शहर में मासूम हैं सारे।
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अपनों के बीच फिर आया हूँ
ये प्यार भरा दिल लाया हूँ।
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#मyanक