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बादलो के पीछे छुपा चाँद से चेहरे का दीदार,
हुआ मुश्किल,तुझमें समाया नौ दुर्गा रूप भवानी!

ना समझ तू इस नारी को अबला,इसने ही रचा है,
इतिहास कल का,तुछ मानव समर्पण ना पहचानी!

डर मत बीच भवर में,तेरे अंदर नारी शक्ति समाई,
लड़ती जा तू वीरांगना की तरह,जग को दिखानी!

समाज़ की रूढ़ि सोच को तोड़, खड़ी हो एकल,
तू,पवित्र है गंगा की भाती,सवाल की रीत है पुरानी!

सपनों की उड़ान भरु मै, दे दो मुझको आज़ादी,
हम भी पुरुष से कम नहीं, लिखनी है वो कहानी!

घर के चार दीवारी में ना बांधो मुझको तुम आज,
तोड़ कर शस्त्र उठाउंगी,व्यर्थ ना जाएगी जवानी!

दुनियाँ से ठोकर खा कर, मुँह के बल गिर चुकी,
फिर भी मन में दृढ संकल्प लेकर दिखानी रवानी!

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