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२१२२ १२१२ २२
मय पिलाई गई या था पानी
रिंद जाने या जानता साकी

साल के आखरी किनारे पर
साथ तेरा मुझे बहुत साथी

जो इरादा रखे है लोहे सा
हार कर जीतता वही बाज़ी

ये दिखाने के दाँत हैं इसके
मुँह में खाने के रखता है हाथी

चैन से सो रहे घरों में हम
जब हिफ़ाज़त को जागती ख़ाकी

ज़ीस्त ने दे दिया तुझे मुझको
कोई अरमाँ नहीं रहा बाकी

हाथ मेंहदी रचाए बैठी हूँ
कैसे लिक्खूँ पिया तुम्हें पाती

तालियाँ न मिलें 'शशि' तुझको
पर दुआ है पड़े नहीं गाली

#ghazal 21
#shashiseesnsays
#shayari