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नीचे अवनि तो ऊपर आसमान,
दोनों के मध्य विधी का विधान;
विरह्र- वैराग्य में हर एक इंसान,
नस- नस बहे लावा एक समान।

चहुं दिशा चल रही भीड़ हैरान,
हर कोई ढूंढ रहा अदद इंसान;
ढूंढा तो मिले अनगिनत हैवान,
इंसान मगर पा न सका इंसान।

हर मन मांगे प्रेम- स्नेह सम्मान,
मगर करना नहीं चाहता दान;
घूम रहा लेकर ह्रदय लहुलुहान,
घूरता अवनि कभी आसमान।

जीवन को बना बैठा है श्मसान,
विरह्र के वैराग्य हर एक इंसान,
नीचे अवनि तो ऊपर आसमान,
दोनों के मध्य विधी का विधान।