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घर की यादों ने अक्सर सताया है मुझे,
मेरी तन्हाईयो ने चलना सिखाया है मुझे,

इक अमीरजादी से हुई थी कभी मुहब्बत मुझको,
जिसकी बातों ने अक्सर रुलाया है मुझे॥

आखिर उसकी बातों को कैसे भुला दूं मैं,
जिसकी रुसवाई ने खुदसे मिलाया है मुझे॥

खुदके जीवन में उजाला पानेे के लिए,
इन चरागो ने जलना सिखाया है मुझे॥

अब तो इक दरबे से हो गई है दोस्ती गहरी,
इन किताबों बालिशो ने सुलाया है मुझे॥

मिलेगी कामयाबी मुझको यकीन है मुझपे!
इक उमर खुदको रातों में जगाया है मैने॥

- प्रभाकर सिंह रनवीर

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