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११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
तुझे माँगा मैंने ख़ुदा से जब, कहीं शिद्दतों में कमी न थी
रही वस्ल की मगर आरज़ू, तेरी फ़ुर्कतों में कमी न थी

कई नज़्म नग़मे ग़ज़ल कहे, छिड़ी रागिनी भी कई दफ़ा
किसी तरह बहला न मेरा दिल, कहीं ख़लवतों में कमी न थी

कभी शायरी, कभी मयकशी ,कभी इश्क के कड़े इम्तिहाँ
कई शौक़ पाले थे जीस्त ने, इसे फ़ुर्सतों में कमी न थी

कई बार उठ के गिरा हूँ मैं, कई बार गिर के संभल गया
कई बार टूटा ये आसमाँ,तो भी हसरतों में कमी न थी

कभी रौशनी, कभी ज़िंदगी, कभी रास्ता,कभी हौसला
मेरी छोटी पड़ गईं झोलियाँ, तेरी रहमतों में कमी न थी

मुझे रहबरी मिली नेक दिल ,तो न रास्तों में डरी हूँ मैं
शशि ज़िम्मेदार हुई है अब, कभी, ग़फ़लतों में कमी न थी

#ghazal 18
#shashiseesnsays
#shayari