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मैं एक सूखे पेड़ की तरह हो चला हूँ,
जिसके सभी पत्ते झड़ चुके हैं।
पत्ते जो प्रतीक थे,प्रेम का क्यूँकि
प्रेम छाया देता है,ठंडक देता है,
आसरा प्रदान करता है।
कुछ टहनियों में नमी बाकी है,
नमी जो प्रतीक है उम्मीद की,
उम्मीद प्रेम के पत्ते उग आने की,
किंतु तना सूख चुका है और
कुछ ही समय मे सूख जाएंगी
वो टहनियाँ और जड़ें भी क्यूँकि
जिस अहसास की भूमि में वे हैं,
वो भूमि अब बंजर हो चुकी है।
और इस तरह पेड़ के साथ
ख़त्म हो जायेंगी
सभी उम्मीदें भी
और फिर
जला दिया जाएगा
उस सूखे पेड़ को।

@प्रशांत शकुन "कातिब"

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