...

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मोमबत्ती..

बस नाम आते ही याद आते हैं..
कुछ गुमनाम से लोग..
वो दो मिनट के मौन और..
वो जुलूस के बाद की..
एक लंबी सी ख़ामोशी.....

मुर्दों के शहर में..
हर दिन एक बेटी जलती हैं..
तो कभी राह चलते..
आबरू लुटने के बाद मरती हैं..
और हम सब तैयार रहते हैं..
फिर से वही मोमबत्ती लेकर..

हाँ वो मोमबत्ती जो सिर्फ़ जलती हैं..
और वक़्त के साथ.....
अंधेरों से लड़ते-लड़ते पिघलती है..
ये दबी सी आवाज़ और..
ये बेपरवाह से लोग..
सिर्फ़ इंतज़ार करते हैं..
एक अनहोनी का और फ़िर वही..
एक मोमबत्ती वाली पदयात्रा का......

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