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बैठे बैठे बिना बात ही मुस्कुरा देती हूं
अपने इश्क़ की दास्तां आंखों से बता देती हूं!
छुपा कर रखा था दिल में जिस एहसास को
तुम्हारी तस्वीर को अक्सर अकेले में सुना देती हूं!
नही आता इज़हार- ए -इश्क़ कैसे करूं तुमसे
अपनी दीवानगी के किस्से दीवारों को बता देती हूं!
कोई तो इलाज़ इस मर्ज का बताओ मुझको
खुली आंखों में उसके साथ ख्वाब सजा लेती हूं!
उफ्फ मोहब्बत के एहसासों को कैसे लिखूं
अनकहे अल्फाज़ से तुमको सिर्फ अपना बना लेती हूं!