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खूबसूरत है ग़ज़ल सी वो हसीना
ख़्वाब में मेरे है आयी वो हसीना
मरमरीं तन है नहीं आँखें ये टिकती
चाँदनी में है नहायी वो हसीना
ढंग उसके खूब अच्छे मुझको लगते
झूमती गाती गुलों सी वो हसीना
ज़िन्दगी में भर गयी है ताज़गी वो
बन हवा का झोंका आयी वो हसीना
आँच उल्फत की नहीं सह पाती है वो
मोम के जैसे पिघलती वो हसीना
नैन उसके है गुलाबी,मद भरे है
है नशे की एक प्याली वो हसीना
जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "