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श्रीरामचंद्र आपकी जय जय सदा ही हो।
मस्तक पे मेरे हाथ, शुभ तेरा सदा ही हो।

मानवता का विकास हो, सद्गुण मिलें सभी,
हर इक बुराई पर मेरी, यथा विजय सदा ही हो।

मद, काम, क्रोध, लोभ पर पाएं विजय सदा,
सब इंद्रियां स्वबस में हो, न विषय कदा भी हो।

सुख दुख व मायाजाल में, ना हम पड़ें कभी,
हर शब्द राम नाम का, राममय सदा ही हो।।

*शारद पण्डित*