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यह एक संवाद है जो हर व्यक्ति अपने struggle के समय में कुछ ना कुछ बाते जरुर ही सुनता है अपने लिए,, अपने *अनुयायियों * से,
"" तुम हो एक बेरहम व्यक्ति :::
तुम हो कठोर नही बचीं है कोई दया भाव
की भावना तुम्हारे अंदर , तुम हो बेशर्म
जो कुछ भी कर रही हो काम सच कहूं तो
तुम हो मुर्ख,जो बस पागलपन वाली ज़िद है,
और ये इतना अहंकार होना अच्छा नहीं है।
देखना एक दिन ,,किसी काम की नही रहोगी।
समय है मान जाओ हमारी बात।
______________________________________&
और जब वो व्यक्ति इतना सब कुछ सुनता है, अपने
मेहनत के दिनों में तो वो व्यक्ति भी जवाब देता है। ।
अपने सभी *अनुयायियों* को मेरे अंदर लाखों बुराईयां भरी हुई है।तो फ़िर तुम कौन हो, बताओं कोई इंसान या एक कमजोर व्यक्ति जो डर रहा है, किसी की मेहनत से कही वो कामयाब होकर तुमसे किनारा कर लिया तो मेरा क्या होगा,
बोलो कौन हो तुम क्योंकि मेरे अंदर तो तुमने सभी वो
बुराईयां बता दी है।जो एक क़ाबिल व्यक्ति में होती है।
क्योंकी जब इंसान अपनी मेहनत से अपनी मंजिल हासिल करता है तो वो, कठोर होता है अपने परिश्रम से वो अहंकार होता है अपने हुनर से वो नाकामयाब होता है समय के पहरे से वो बेशर्म होता है, बार बार हार कर जीतनें की कोशिश में, और हा वो भावनाओं और करूणा भरे शब्दों से भी परे हट कर वो,
अपनी पहचान बनाता है, ताकी वो जीवन भर लोगों के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाये एक इंसान होने की,एक निड़र और साहसी बनकर।।
_______________________________________& फिर वो बोलता है, अरे बताया नही
तुम कौन हो
मेरे*अनुयायियों* ........*
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